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संग गया नहीं धेला

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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हे हमारी प्यारी हरियाली वसुन्धरा, तुझे नमन,
जीती हूँ देखकर मैं, तेरा हरियाली भरा चमन।

हे धरा तेरी पावन माटी से, बनी है ये काया मेरी,
अन्त क्षण काया माटी का रूप लेके, होगी तेरी।

हे वसुन्धरा आपके आँचल तले, सब जीता हूँ,
धरती में बहती, पावन गंगाजल सभी पीता हूँ।

जन्म समय में कुछ लेकर, हम तो आए नहीं थे,
संग क्या ले के जाऊँगा, श्रीकृष्ण बताए नहीं थे।

कितने राजा,रंक,फकीर, सन्त जन गए-आए,
पाप-पुण्य, झूठे-सच्चे ढंग से दौलत कमाए।

पाई-पाई धन कमाए, राजा बन कर अकेला,
जग से जब विदा हुए, संग गया नहीं धेला॥

परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है

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