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इन उपन्यासों की भाषा-शैली सरल, विषय-वस्तु एकदम नई

भोपाल (मप्र)।

इन दो उपन्यासों की भाषा शैली सरल, सहज और बोधगम्य है। लेखक ने उपन्यास लिखते हुए भाषा की महत्ता को ध्यान में रखते हुए ऐसे शब्दों को प्रयोग में नहीं लाया, जो हिंदी से इतर हों। किताबों की विषय वस्तु एकदम नई है। राम कथा हर भारतीय के दिल में बसी है और उससे सब परिचित हैं, लेकिन दोनों उपन्यास में जो घटनाक्रम, पल-प्रतिपल घट रहा होता है और रामकथा के पात्रों के मन में जो विचार चल रहे होते हैं, उसका विवरण अद्भुत है। लेखक ने परकाया प्रवेश करते हुए कथानक को लिखा है, जिसे पढ़ते हुए लगता है कि प्रसंग चलचित्र की तरह आँखों के सामने चलायमान हो रहे हैं। अपने लेखकीय कौशल से लेखक गोवर्धन यादव ने माता कैकेई पर लगने वाले सभी लांछनों से उन्हें मुक्त करने का सराहनीय कार्य किया है।
अध्यक्षीय उद्बोधन में मानस मर्मज्ञ रघुनन्दन शर्मा ने उपन्यास ‘वनगमन’ तथा ‘दण्डकारण्य़ की ओर’ पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए यह बात कही। हिंदी भवन भोपाल के महादेवी वर्मा सभाकक्ष में रामकथा पर आधारित गोवर्धन यादव द्वारा लिखित उक्त उपन्यास पर पुस्तक चर्चा हिन्दी भवन न्यास द्वारा रघुननदन शर्मा (पूर्व सांसद, उपाध्यक्ष हिन्दी भवन एवं कार्य. अध्यक्ष मानस भवन भोपाल) की अध्यक्षता एवं मनोज श्रीवास्तव (पूर्व आईएएस एवं प्रधान संपादक ‘अक्षरा’), डॉ. राजेश श्रीवास्तव (निदेशक- रामायण केन्द्र भोपाल, मुख्य कार्यपालन आधिकारी, म.प्र.तीर्थ एवं मेला प्राधिकरण), डॉ.सुरेन्द्र बिहारी गोस्वामी (कार्य. मंत्री-संचालक हिंदी भवन) तथा भवन के मंत्री-संचालक कैलाश चन्द्र पंत की गरिमामय उपस्थिति में श्री यादव की सद्य प्रकाशित पुस्तकें ‘पातालकोट -जहाँ धरती बांचती है आसमानी प्रेमपत्र’
(यात्रा वृत्तांत) तथा कहानी संग्रह- ‘खुशियों वाली नदी’ का विमोचन किया गया।
तदनन्तर श्री पंत ने डॉ. गोस्वामी को शाल, श्रीफ़ल और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। पुस्तक-चर्चा में डॉ. राजेश श्रीवास्तव ने कहा कि यदि हम श्रीराम के जीवन का आकलन करें तो चौदह वर्ष का वनवास जो उन्होंने झेला है, वही उनके संपूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण करता है। लेखक ने इसे अपनी कल्पनाओं के माध्यम से एक नए रुप में उकेरा है।
मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि, श्रीराम ने वंश परम्परा विरासत को नहीं अपनाते हुए अपने आपको स्वयं ढाला। यदि वे अपनी सीमाओं की सुविधा और सरलता में आबद्ध होते तो उनका पुरुषार्थ सिद्ध होता, न ही भगवत्ता। आपने कहा कि, माता कैकई के एक भिन्न स्वरूप का जो वर्णन श्री यादव ने अपने उपन्यास ‘वनगमन’ में किया है, वह अद्भुत है।

संचालन साहित्यकार गोकुल सोनी ने किया। प्रो. गोस्वामी द्वारा सार समीक्षा करते हुए आभार प्रकट किया गया।

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