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संविधान से ‘इंडिया’ नाम को हटाया जाए।

ई-संगोष्ठी…

मुंबई (महाराष्ट्र)।

विपक्ष के गठबंधन द्वारा ‘इंडिया’ नाम रखे जाने के कारण भारत और इंडिया’ का मुद्दा एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में है। वैश्विक हिंदी सम्मेलन (मुम्बई) तथा जनता की आवाज फाउंडेशन सहित विभिन्न संस्थाओं द्वारा लंबे समय से ‘इंडिया’ नाम हटाने और केवल ‘भारत’ नाम अपनाने की मांग की जाती रही है। इस विषय पर दोनों संस्थाओं द्वारा वैश्विक ई-संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
संगोष्ठी में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता एवं संविधान विशेषज्ञ प्रदीप कुमार ने बताया कि, किस प्रकार २९९ सदस्यों वाली संविधान सभा में केवल ५६ लोगों की उपस्थिति में संविधान सभा में ‘इंडिया’ नाम लिया गया और नाम के पक्ष में सहमति देने वाले सदस्यों की संख्या केवल ३५ थी। उन्होंने संविधान से इंडिया नाम हटाने की प्रक्रिया की भी जानकारी दी। संगोष्ठी में शिकागो से जुड़ी टीवी एशिया की मिडवेस्ट ब्यूरो की मुख्य सम्पादक वंदना झिंगम ने इंडिया नाम रखे जाने को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए इसे वैश्विक मीडिया में उठाते हुए आवश्यक प्रयास करने की बात कही। नीदरलैंड से संगोष्ठी में उपस्थित हिंदी यूनिवर्स फाउंडेशन की अध्यक्ष प्रो. पुष्पिता अवस्थी ने कहा कि, भारत की ऐतिहासिक सांस्कृतिक पहचान ‘भारत’ नाम से है, न कि ‘इंडिया’ से। सम्मेलन के निदेशक डॉ. मोतीलाल गुप्ता ‘आदित्य ने भारत नाम की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की जानकारी देते हुए बताया कि, भारत नाम को देश-दुनिया में प्रतिष्ठित करने का एक ही तरीका है कि संविधान से ‘इंडिया’ नाम को हटाया जाए। उन्होंने कहा कि ‘भारत’ नाम ध्वनि में जो प्रभाव है, वह इंडिया में नहीं है। कार्यक्रम में ऑस्ट्रेलिया से डॉ. मृदुल कीर्ति, प्रौद्योगिकीविद् हरिराम पंसारी, नरेंद्र गुप्ता, कृष्ण कुमार नरेड़ा, स्नेहलता पाठक सहित देश-विदेश के अनेक विद्वान उपस्थित हुए।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुम्बई)