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सच पूछो तनहाई है

नरेंद्र श्रीवास्तव
गाडरवारा( मध्यप्रदेश)
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दिल-दिमाग में जबसे दौलत,कूट-कूट कर छायी है।
भीड़ भले ही आसपास है,सच पूछो तनहाई है॥

प्रतिस्पर्धा ये रेगिस्तानी,
दौलत की मृगमरीचिका।
तपते रिश्ते सूख रहे हैं,
पता नहीं है पानी का॥
प्रतिस्पर्धा को छोड़ें,बदलें,पर करे कौन अगुवाई है।
भीड़ भले…

ठाठ-बाट के साधन इतने,
आकर्षित बाजार किये।
‘सब-कुछ’ से झट घर भर लेवें,
जागी आँखें स्वप्न लिये॥
अहं भरा दीवानापन ये,इसकी ना भरपायी है।
भीड़ भले…

दूर हुईं हैं जबसे पुस्तक,
दूर हुए हैं सयाने भी।
जीवन के पैमाने बदले,
अपने औ’ बेगाने भी॥
प्रेम पहुंच से दूर हुए पल,कटुता ने हथियायी है।
भीड़ भले…

हमें बदलना होगा निज को,
नेह,नेक भरना होगा।
घृणा,द्वेष,पाखंड,अहं को,
दृढ़ता से तजना होगा॥
जब होगा संतोष हृदय में,तभी सुख,शांति,शहनाई है।
भीड़ भले ही आसपास है,सच पूछो तनहाई है॥

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