मुफ़लिसी में फिर हमें सताने आ गए।
तसव्वुर-ए-चिरागा को बुझाने आ गए।
जश्न में हिमाक़त क्या दिखाई हमने,
इज़्तिराब होकर नींद में डराने आ गए।
देते रहे जख़्म हर मोड़ पर हमें,
चुप रही फिर भी आजमाने आ गए।
हर दर्द को घोल कर फ़िज़ाओं में जिए,
लोग मरहम भी नमक का लगाने आ गए।
कितने नादाँ थे ये तब मालूम हुआ,
अस्ल को हिलाने आशियाने आ गए।
जफ़र पर खुश कभी होने नहीं दिए,
सेज़ काँटों की बिछाने काफ़िलाने आ गए॥
परिचय-विद्या पटेल का साहित्यिक उपनाम-सौम्य है। १९८४ में १२ जुलाई को सौम्य,इलाहाबाद (उ.प्र.)में जन्मीं है। वर्तमान में इलाहाबाद स्थित शिवगढ़ सोरांव में निवास है। यही आपका स्थाई पता भी है। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश निवासी विद्या पटेल की शिक्षा-एम.ए.(हिन्दी),बी.एड.सहि
त जे.आर.एफ.(नेट) है। इनका कार्य क्षेत्र-अध्यापन का है। इनके लिए प्रेरणा पुंज-समाज में होती विभिन्न घटनाएं हैं,जो लिखने को प्रेरित करती हैं। सामाजिक गतिविधि के तहत आप साहित्य के माध्यम से समाज को जाग्रत करने में सक्रिय हैं,और लेखनी का यही उद्देश्य है। लेखन विधा-कविता,लेख एवं ग़ज़ल है।