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सत्कर्म ही मुक्ति का मर्म

राजू महतो ‘राजूराज झारखण्डी’
धनबाद (झारखण्ड) 
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जल्दी जाने की आपा-धापी में,
बेचारा मन बेचैन हो चला है
कहीं पीछे ना रह जाऊँ सबसे,
यही भाव अब मन में खला है।

सोचकर यही बचपन में खूब दौड़ा,
पढ़-लिखकर शीघ्रता से आगे बढ़ा
तनिक मर्म को समझा तर्क को जोड़ा,
मुड़कर ना देखा आगे ही आगे बढ़ा।

छूटा बचपन आई जवानी नई कहानी,
काम, काम, काम और दाम, दाम, दाम
स्वयं की चिंता छोड़ बच्चों को पढ़ाने की होड़,
फिर पीछे न देख पाया तनिक मन को मोड़।

फिर आ गया बुढ़ापा रूठ गई जवानी,
आज भी देखो हुई शुरू फिर नई कहानी
बच्चे अपने-अपने कार्यों में हो गए व्यस्त,
फिर अब बिगड़ने लगा अपना भी स्वास्थ्य।

बिगड़ा स्वास्थ्य देख करने लगा आकलन,
जीवन पर्यंत मोह-माया में दौड़ता रहा मन
सुबह से हो गई शाम मोक्ष का किया न काम,
कोई बताए! अब मैं कैसे जाऊं परमधाम।

जीवन की अंतिम घड़ी में नहीं है कोई अपना,
अपने-पराए, रिश्ते-नाते सबका एक ही कहना
बहुत हो चुका ईश्वर उठा ले इन्हें अब,
न जाने जीवन इनका जहां में पूरा होगा कब।

कहता ‘राजू’ मोह-माया का बंधन छोड़,
दुनिया में नहीं, ईश्वर से ही तू नाता जोड़।
सत्कर्म कर मिट जाएंगे सारे भरम,
सत्कर्म ही अपनी मुक्ति का करम॥

परिचय– साहित्यिक नाम `राजूराज झारखण्डी` से पहचाने जाने वाले राजू महतो का निवास झारखण्ड राज्य के जिला धनबाद स्थित गाँव- लोहापिटटी में हैL जन्मतारीख १० मई १९७६ और जन्म स्थान धनबाद हैL भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखने वाले श्री महतो ने स्नातक सहित एलीमेंट्री एजुकेशन(डिप्लोमा)की शिक्षा प्राप्त की हैL साहित्य अलंकार की उपाधि भी हासिल हैL आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी(विद्यालय में शिक्षक) हैL सामाजिक गतिविधि में आप सामान्य जनकल्याण के कार्य करते हैंL लेखन विधा-कविता एवं लेख हैL इनकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ देशभक्ति भावना को विकसित करना हैL पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचन्द जी हैंL विशेषज्ञता-पढ़ाना एवं कविता लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे देश का एक अभिन्न अंग है। यह राष्ट्रभाषा के साथ-साथ हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसका विकास हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए अति आवश्यक है।