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सत्य की राह

मनीषा मेवाड़ा ‘मनीषा मानस’
इन्दौर(मध्यप्रदेश) 
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सत्य की राह चले जो हम तो,
पैरों में काँटे चुभ आये।
बाधाएं-ही-बाधाएं आयीं,
ठोकर हमने पल-पल खायी।
सत्य की राह चले जो हम तो,
पैरों में काँटे चुभ आये॥

हँसी-ठिठोली खूब बनायी,
सफलता भी रास ना आयी।
सत्य की राह चले जो हम तो,
पैरों में काँटे चुभ आये॥

मिथ्या कहकर,भ्रम दिखाया,
असत्यता का लोभ दिखाया।
पर हमने खुद को ना बहकाया,
जो चाहा ,वो ही कर दिखलाया।
सत्य की राह चले जो हम तो,
पैरों में काँटे चुभ आये॥

काँटों की ये पीर थी पैनी,
उपेक्षाओं की लगी थी छैनी।
चुनौतियों को अवसर समझा,
काँटों को पलकों से सींचा।
पाषाणों में फूल खिलाये,
तब जाकर ‘मानस’ कहलाये।
सत्य की राह चले जो हम तो,
पैरों में काँटे चुभ आये॥

परिचय-श्रीमति मनीषा मेवाड़ा का साहित्यिक मनीषा मानस है। जन्म तारीख ३ अगस्त १९८१ और जन्म स्थान-झाबुआ है। वर्तमान में इन्दौर(मध्यप्रदेश) में और स्थाई निवास आष्टा जिला-सीहोर है। हिन्दी का भाषा ज्ञान रखने वाली मध्यप्रदेश वासी मनीषा मानस ने बी.ए.(हिन्दी साहित्य),एम.ए. (अर्थशास्त्र-लघु शोध प्रबन्ध के साथ) और पीजीडीसीए की शिक्षा हासिल की है। इनका कार्यक्षेत्र-शिक्षक का है। सामाजिक गतिविधि में जरुरतमंद बच्चों को सामाजिक संगठन से हरसम्भव मदद दिलाने का सफल प्रयास करती हैं। लेखन विधा-लेख एवं काव्य है। आपकी विशेष उपलब्धि-महाविद्यालय जिला स्तर प्रतियोगिता में रचनात्मक लेखन में चयन तथा कार्यक्षेत्र में जिला स्त्रोत समूह के रुप में कार्य का अवसर है। लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी लेखन में रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचन्द और प्रेरणापुँज-गुरुजन हैं। देश और हिन्दी भाषा पर आपका कहना है-“हिन्दी भाषा की समृद्धि ही देश विकास के चिन्तन को प्रमुख आधार प्रदान करती है।”

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