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सपने संजोए थे हमने

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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छोटी-सी जिन्दगी में बहुत- कुछ देखा था हमने,
घोंसलों में रहते हुए तिनके चुन-चुन कर लाते माँ-बाप बच्चों के लिए,
कितने बेकरार रहते हैं
वैसे ही, कितने सपने संजोए थे हमने।

छोटा-सा परिवार, सुखी परिवार का रिश्ता बनाया था हमने भी,
पर अंधियारा इतना छाया कि बादल में घने कोहरे की
छाया थी,
आँधियों में उजड़ गया वह आशियाना।
कितने सपने संजोए थे हमने…

सफर-ज़िन्दगी में दुखों की इतनी खाई देखी है हमने,
कि अब खुशी से डर लगता है
जमाने से नहीं है कोई गिला,
किस्मत में साथ तेरा इतना ही था।
क्योंकि, कितने सपने संजोए थे हमने…

लोग कहते हैं तेरे नसीब में वह सुख नहीं है,
पर सुख की चाह किसको है
दुःख का दर्द इतना ज्यादा है,
कि सहते-सहते कहीं दम निकल ना जाए।
कितने सपने संजोए थे हमने…

नींद में हम थे,
लग रहा था सब सो रहे हैं
पर नींद से जागे तो सुबह हो गई,
पर तू नहीं था…।
कितने सपने संजोए थे हमने…॥