श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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हाँ जी, हाँ हम निर्धन हैं, तो क्या हुआ संस्कार वाले हैं
अपनों के लिए मधुर, दुश्मनों के लिए जहर के प्याले हैं।
अपना जीवन व्यतीत करता हूँ मैं, सदा पिता के संस्कार से
मैं माता-पिता को सम्मान, अनुजों को रखता हूँ बहुत प्यार से।
मैं घर में रहूँ या परदेस में, परिजनों की शिक्षा नहीं भूलता हूँ
दुश्मन लाख बुरा चाहे, मगर, भगवान पर विश्वास रखता हूँ।
हाँ जी, हाँ मैं निर्धन हूँ, तो क्या हुआ, मैं कड़ी मेहनत करता हूँ
झूठ, फरेब, छल, प्रपंचों से मैं, कोसों, सदा दूर रहता हूँ।
मैं तो किसान का पुत्र हूँ, हँसकर हल भी मैं चला लेता हूँ
‘दो जून की रोटी’ के लिए, कभी भी नहीं ईमान बेचता हूँ।
रोटी के लिए लम्बा सफर, तय करना पड़ेगा, तो मैं करूँगा
अपनी भारत माता के लिए, मरना पड़ जाए, तो मैं मरूँगा।
जिंदगी की भाग-दौड़ में, परिवार को भी पकड़ कर रखा है,
जन्म लिया है, कर्म करना होगा, दु:ख-सुख का फल चखा है।
हाँ जी, हाँ मैं धन का निर्धन हूँ, पर मन का बहुत धनवान हूँ
युद्ध करने के लिए नहीं, सेवा करने के लिए मैं बलवान हूँ।
नारी सुरक्षा, गौ रक्षा करना, यही अपना परम धर्म है
दूसरों के दु:ख में काम आना, मनुष्य का सफल जन्म है॥
परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है |