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सब खुशियाँ रोईं थीं

राधा गोयल
नई दिल्ली
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बड़े प्रेम से बड़े जतन से जो फसलें बोईं थीं,
भारी बारिश आई अचानक, सब खुशियाँ रोईं थीं
कितने सपने देखे थे कि भारी फसल उगेगी,
जब बाजार में बेचूँगा तो अच्छे दाम बिकेगी।,

उस पैसे से हम अपनी बिटिया का ब्याह करेंगे,
अपनी लाडो की सारी इच्छाएँ पूर्ण करेंगे
फसल नष्ट हो गई सारी, अब बिटिया का क्या होगा ?
ब्याह टूट जाएगा उसका, क्या-क्या सहना होगा ?

शादी टूटेगी तो उसकी माँ भी टूट जाएगी,
मेरे घर की सारी खुशियाँ, हमसे रूठ जाएँगी
अरे विधाता! हम कृषकों पर रहम नहीं क्यों आता ?
जो धरती पर अन्न उगाता, खुद भूखा मर जाता।

जब सिंचाई की पड़े जरूरत, तब बरसात न होती,
बिन बादल बरसात अचानक, बिना जरूरत होती
दिल के सब अरमान धुल गए, इस बैरन बारिश में,
मर-मर कर जीते हैं हम, _बस केवल इस ख्वाहिश में।

कोई मसीहा आएगा, जो समस्याएँ समझेगा,
करके उनका निदान, हम कृषकों की पीर हरेगा॥

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