ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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भर रखी आँचल में अपनी सुरमई-सी स्वर्ण शामें।
कर रही श्रंगार सजना नेह गहनों के बहाने।
घोल तेरी प्रीत तन पर तनिक-सा उबटन लगा लूँ,
इत्र तेरे देह का जल में मिला जी भर नहा लूँ
नैन दर्पण देख तेरा मैं करूँ श्रंगार सजना,
सज पिया सजनी निहारे चित्त में अनुराग बाँधे।
कर रही श्रंगार…
घाघरा-चोली रँगी हो प्यार वाले रँग तेरे,
स्नेह वाली ओढ़नी के हो बदन पे मेरे फेरे
आँख में अंजन बना छवि तेरी मूरत मैं सजा लूँ,
तुम चले आना खुशी की अधर में लाली लगाने।
कर रही श्रंगार…
वेणि में मैं गूंथ मुक्ता मोतियों के फुँदरे कुछ,
केश फूलों से सजा हीरे जरी गोटे जड़े कुछ
माँग में भर व्यंजनाओं भाव की शुभ लाल कुमकुम,
प्रेम नगरी द्वार प्रीतम तब घुमाना बाँह थामे।
कर रही श्रंगार…
पाँव बिछुये आलता पायल पहन रुमझुम चलूँगी,
खनक कहती चूड़ियों की हर जनम तुमको वरूँगी
माथ चुम्बन बिंदिया झुमके कहे कुछ न सुनूँगी,
ला नयी देना गुमी नथ नग कहाँ लड़ राम जाने।
कर रही श्रंगार…॥
परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।