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कब आयेंगे….

नरेंद्र श्रीवास्तव
गाडरवारा( मध्यप्रदेश)
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बोझिल-सी बैचेन निगाहें,ताक रहीं हैं राहों को।
कब आयेंगे दिलवर मेरे,थामेंगे इन बाँहों को॥

सपने देख रही है चाहत,
अरमानों का संग लिए।
स्वप्निल छुअन मखमल जैसी,
पल-पल पुलकित अंग लिए।
शीतल-प्रीत बयार चली ये,महकाए है साँसों को,
कब आयेंगे दिलवर…

सीने में तस्वीर बसी जो,
नज़र फिज़ाओं में आए।
रोम-रोम को हर्षित करती,
चंदन खुशबू महकाए॥
रूप बावरे,प्रेम घनेरे,दृश्य दिखाए आँखों को,
कब आयेंगे दिलवर…

तनहाई के पल-पल भारी,
विरहागन की तप्त भरे।
पूनम रात सितारों वाली,
आस मिलन से तृप्त करे॥
बेताबी,मदहोशी लाए,पंख लगाए ख़्वाबों को,
कब आयेंगे दिलवर…॥

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