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सावन मास का पावन पर्व

प्रो. लक्ष्मी यादव
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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पावन सावन-मन का आँगन…

‘बदरा आ…हाय…बदरा छाए के
झूले पड़ गए हाय, कि मेले लग गए हाय…
मच गई धूम…रे कि
आया सावन झूम के…।’
४ ऋतु में से वर्षा ऋतु का बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता है, क्यूंकि भीषण गर्मी से लोगों का हाल बेहाल हो जाता है। ग्रीष्म के बाद वर्षा ऋतु का आगमन होता है, जो पूरी धरती को पावन करती है। अर्थात चारों तरफ हरियाली छा जाती है। खेत-खलिहान हरे-भरे दिखते हैं। किसान अपने खेत में बीजारोपण करते हैं, गीत-संगीत गाते हैं, इसी मास में पावन मास सावन भी आता है, जो अँग्रेजी मास के अनुसार अगस्त के महीने में आता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार सावन मास में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो विष निकला, उसे भगवान शिव ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की, लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया। इसी विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया, इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने का खास महत्व है। यही वजह है कि श्रावण मास में भोले बाबा को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। माता पार्वती जी ने भी भगवान शिव को पाने के लिए उपासना की, व्रत रखा, जो सावन मास में ही किया गया था।
प्राचीन काल से लेकर अब तक हमारे भारत में त्यौहारों का एक विशेष महत्व है। सावन मास भी किसी त्यौहार से कम नहीं मनाया जाता है। सभी स्त्रियाँ और कन्याएं इस व्रत को रखती हैं। सभी की अपनी-अपनी मान्यता है।
प्रत्येक राज्य में व्रत के अलग-अलग व्रत के तरीके हैं, अलग मान्यताएं हैं। जैसे श्रावण मास में उत्तर भारत के रहवासी कजरी, गीत-संगीत गाते हैं। महिलाएँ, बच्चे, बूढ़े सभी झूला झूलते हैं। सभी महिलाएं एकत्रित होकर गीत गाती हैं और एक उत्सव के रूप में इसे मनाते हैं। महाराष्ट्र में देखा जाए तो एकत्रित होकर एक झुंड में महिलाएं एक-दूसरे का हाथ पकड़कर गोलाकार बनाकर गीत गाती हैं और तिरछा हाथ पकड़ एक खेल खेलती हैं ‘फुगड़ी’, जिसका एक एक अलग ही आनंद है।
भारत देश की यही खास बात है कि, त्यौहारों को एक उत्सव के रूप में मनाते हैं, सावन भी उन्हीं में से एक है, जो चारों तरफ खुशियाँ ही खुशियाँ बिखेरता है।

सावन मास का यह पावन पर्व सच में बहुत ही अच्छा है। भगवान शिव की पूजा अर्चना उपासना और अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए सावन सोमवार का व्रत लाभकारी है। कई प्रामाणिक और वैज्ञानिक तथ्य भी है किजिस तरह इस मास में कीट- पतंगे अपनी सक्रियता बढ़ा देते हैं, उसी तरह मनुष्य को भी पूजा-पाठ में अपनी सक्रियता बढ़ा देनी चाहिए।