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सुहाना पागलपन

मदन मोहन शर्मा ‘सजल’ 
कोटा(राजस्थान)
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वह निहारती है तो मैं
नजरें झुका लेता हूँ,
वह हया के परदे में
सिमट जाती है जब मैं
उसे एकटक देखता हूँ,
शबनम-सी लरजती
अंतर्मन से प्रस्फुटित होती,
भावनाओं का कोमल स्पर्श
मदहोश करती अभिलाषा,
आँखों से नूर बनकर
टप-टप टपकती है,
पर खामोश।

थरथराते हैं होंठ
करने लगता हूँ इज़हार
प्यार का,
अठखेलियां करती प्रेम इच्छाएं
लालायित है,
प्रियतम से गुफ्तगूं करने को,
पर खामोश।

कभी न खत्म होने वाला सन्नाटा
बिखरा पड़ा है हमारे चारों ओर,
जो एहसास है बेदर्द ज़माने का।
वह भी खामोश!
मैं भी खामोश!!
दोनों खामोश!!!
और खामोशी से देखते हैं
एक-दूसरे को हसरत लिए,
देखते रहे,देखते रहे,देखते रहे।
वाह री मोहब्बत-
वह भी पगली!
मैं भी पगला!!
दोनों पगले!!!

परिचय-मदन मोहन शर्मा का साहित्यिक नाम  ‘सजल’ है। जन्मतिथि ११ जनवरी १९६० तथा जन्म स्थान कोटा(राजस्थान)है। आपका स्थाई पता कोटा स्थित आर. के.पुरम है। श्री शर्मा ने स्नात्तकोत्तर (अंग्रेजी साहित्य) की शिक्षा हासिल की और पेशे से व्याख्याता(निजी महाविद्यालय)का कार्यक्षेत्र है। आपकी लेखनी का उद्देश्य समाज में व्याप्त बुराइयों,आडम्बरों के खिलाफ सतत संघर्ष के लिए कलम उठाए रखना है। कलम के माध्यम से समाज में प्रेम, भाईचारा,सौहार्द कायम करना आपका प्रयास है। गीत,कविता,गज़ल,छन्द,दोहे, लेख,मुक्तक और लघुकथाएं आदि लेखन विधा है।

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