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सैन्य कार्रवाई की पारदर्शिता व संवेदनशीलता हो घाटी में

ललित गर्ग

दिल्ली
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पुंछ और राजौरी के सीमावर्ती इलाके में एक बार फिर आतंकी हमला हुआ है, यह संविधान के अनुच्छेद ३७० पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद किया गया पहला बड़ा आतंकवादी हमला है। यह हमला जहां आतंकियों की हताशा को दर्शा रहा, वही ऐसी संभावनाएं भी पुरजोर उजागर कर रहा है कि, आतंकी तत्व ऐसी और वारदात को अंजाम देने की कोशिश करेंगे। ऐसे में
घाटी में शांति एवं विकास को बाधित करने की आतंकियों की कुचेष्ठाओं को निष्फल करने के लिए सुरक्षाकर्मियों को अपनी तैयारी को अधिक मजबूत, पारदर्शी एवं संवेदनशील करना होगा। विशेषतः सुरक्षाकर्मियों को मनोबल एवं आत्मविश्वास को बढ़ाने के साथ घाटी के लोगों के लिए संवेदनशील होना होगा, ताकि घाटी में आतंक एवं अशांति फैलाने के मंसूबे सफल न हो सकें। हालांकि, आँकड़ों के लिहाज से देखा जाए तो इसमें संदेह नहीं कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं में कमी आई है, लेकिन यह भी सच है कि ऐसे कई हमले पिछले कुछ अर्से में हुए हैं। अब कश्मीर भारत की इज्जत एवं प्रतिष्ठा का प्रश्न है, नाक है।
पुंछ और राजौरी के सीमावर्ती इलाके आतंकी गढ़ बने हुए हैं, इन क्षेत्रों के घने जंगलों के कारण आतंकी घटनाओं को अंजाम देने में सुविधा रहती है। यही कारण है कि, इन्हीं क्षेत्रों में बार-बार आतंकवादी घटनाएं हो रही है।
बेशक ३७० हटने से माहौल बदला है, मगर इसका मतलब यह भी नहीं है कि नागरिकों के सन्दर्भ में सेना की किसी भी कोताही को सेना का खुद का तन्त्र और सरकार बर्दाश्त कर सकती है। हर नागरिक का न्याय पाना भी मौलिक अधिकार होता है। इसी वजह से सेना खुद ३ नागरिकों की मृत्यु के बारे में बहुत संजीदा एवं संवेदनशील नजर आई है और दुनिया को यह सन्देश देना चाहती है कि भारत की सेनाएं केवल विश्व के विभिन्न अशान्त क्षेत्रों में ही शान्ति कायम करने के लिए नहीं बुलाई जाती है, बल्कि देश में भी वह पूरी संवेदनशीलता एवं मानवीयता के साथ इस पर अमल करती है।
बार-बार जंग का मैदान देख चुके कश्मीर को गोली की जगह मतदान की ओर लाने के लिए सैन्य कार्रवाई की पारदर्शिता एवं संवेदनशीलता जरूरी है। भले ही आतंकी घटनाओं का रह-रह कर रंग दिखाना एक अघोषित जंग ही है, जंग कोई भी हो खतरा तो उठाना ही पड़ता है। जंग कैसी भी हो, लड़ता पूरा राष्ट्र है।
यह जाहिर है कि, जम्मू-कश्मीर में सैन्य बलों को बेहद मुश्किल हालात में अपना काम करना होता है और जितनी कुशलता से वे अपने कार्यों को अंजाम दे रहे हैं, जिन खतरों का सामना कर रहे है, वह सराहनीय है, लेकिन घटनाओं को देखें तो ऐसा लगता है कि इस बार उनसे कुछ चूक हुई है। हमें बहुत सावधानी एवं सतर्कता से अपने लक्ष्यों को हासिल करना है।
करीब १ साल की घटनाएं बताती हैं कि इस इलाके में आतंकवादियों की सक्रियता बढ़ी है। ऐसा लगता है कि आतंकवादियों ने इस इलाके में अपनी आतंकी घटनाओं को सफलतापूर्वक अंजाम देने के लिए पूरा तंत्र विकसित कर लिया है। विशेषतः आतंकवादियों को यहां रहने वाले कुछ लोगों की प्रत्यक्ष या परोक्ष मदद मिलना अधिक चिन्ता का विषय है, जबकि अनुच्छेद ३७० के इतिहास का हिस्सा बन जाने के बाद से घाटी में शांति एवं अमन का, विकास एवं सौहार्द का एक नया दौर शुरू हुआ है। स्थानीय व्यापार ने तरक्की के नए शिखर प्राप्त किए हैं, पयर्टकों की बढ़ती संख्या जहां स्थानीय आर्थिकता को बढ़ावा दे रही है, वहीं नौजवानों को रोजगार के मौके भी मुहैया करा रही है। ऐसे में आतंकवादी तत्व बेसब्री से आतंक, अशांति, असंतोष एवं उन्माद फैलाने का मौका तलाश रहे हैं। पड़ोसी देश पाकिस्तान आतंकवाद को पनपाने के लिए हर तरह से सहयोग कर रहा है। पाकिस्तान के कारण ही घाटी दोषी एवं निर्दोष लोगों के खून की हल्दी घाटी बन रही है, उसने न केवल घाटी में, बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत के खिलाफ जहर उगलना जारी किए हुए है। हालांकि, अब पूरी दुनिया के सामने यह साफ हो चुका है कि, पाकिस्तान ही पूरी दुनिया में ऐसा मुल्क है जिसे दहशतगर्दों एवं आतंकवादियों की उर्वरा जमीन कहा जाता है, परन्तु दुर्भाग्य से पूर्व में भारत के भीतर भी कुछ गैर सरकारी संगठन एवं घाटी की राजनीतिक शक्तियों ने कश्मीर में सेना द्वारा मानवीय अधिकारों के उल्लंघन का मसला उठाने की कोशिश की है, जिसका जवाब भी हमारी सेना के भीतरी न्यायिक तन्त्र द्वारा बखूबी दिया जाता रहा है और किसी भी दोषी को बचाने की मेहरबानी कभी नहीं की गई है, लेकिन यह भी हकीकत है कि कश्मीर में ही कुछ पाक समर्थक माने जाने वाली शक्तियाँ हमारे सैनिकों को खलनायक के तौर पर पेश करने तक से भी बाज नहीं आती रही हैं। इस चुनौतीपूर्ण दौर में सैन्य अधिकारियों को अधिक सतर्कता एवं सावधानी से आगे बढ़ना होगा एवं आतंकवाद को निस्तेज करना होगा।

कश्मीर में असली जंग अब है। घाटी के लोगों को बन्दूक से सन्दूक तक लाना बेशक कठिन एवं पेचीदा काम है, लेकिन इस वक्त राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता संबंधी कौन-सा कार्य पेचीदा और कठिन नहीं है ? निश्चित ही घाटी में शांतिपूर्ण मतदान कराने तक का समय अधिक चुनौतीपूर्ण है। चीन एवं पाकिस्तान ऐसा न हो, इसके लिए सभी तरह के हथकंडे अपनाएंगे, साजिश एवं षड़यंत्र करेंगे। वैसे भी अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी हो या पाकिस्तान की राजनीतिक अस्थिरता या फिर गाजा में हमास और इस्राइल की जंग, कश्मीर की सुरक्षा स्थिति पर इन सबका प्रभाव पड़ता है। वजह यह है कि, यहां से कट्टरपंथी धाराओं का प्रभाव पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सका है। चूंकि, भारत के लिए आतंकवाद के खिलाफ सबसे बड़ी ढाल कश्मीर के लोग ही हैं, इसलिए लोगों का विश्वास बनाए रखते हुए ही आगे बढ़ना होगा। चाहे सवाल सैन्य कार्रवाई की पारदर्शिता का हो, या चुनावी प्रक्रिया की बहाली का।