डॉ. संगीता जी. आवचार
परभणी (महाराष्ट्र)
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हर पल कुछ नए से सुहाती रहती है तू,
नए सिरे से दिल को यूँ ही लुभाती है तू
नई-नवेली दुल्हन जैसी सजती है तू,
नया कुछ कर गुजरने का ज़ज्बा देती है तू…।
लड़ने की प्रेरणा बनकर खड़ी है तू,
दुनियादारी के मायने समझाती है तू
व्यस्त रहने के फायदे सिखाती है तू,
व्यवहार से वास्ता भी जताती है तू…।
बुराई से भी कभी-कभी टकराती है तू,
हौंसला-अफजाई की मशक्कत करती है तू
डटकर चलना भी बताती रहती है तू,
हमसफर बनके चलना जानती है तू…।
खुद का अन्दाज बनाने को उकसाती है तू,
औरों के लिए जीने का अवसर देती है तू।
विधाता की भेंट खुशनुमा रहती है तू,
जिन्दगी हर पल नई उम्मीद जगाती है तू…॥