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हारा नहीं हूँ

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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टूट गया हूँ मैं अपने दुखों से, फिर भी हारा नहीं हूँ मैं
दर्द बहुत दे दिया है ज़माने ने,
इतने कम समय में
पर इन दुखों से डर कर भागा नहीं हूँ मैं।

मुश्किलों में भी ज़िन्दगी तू तो, मेरे साथ रही है
इसी लिए लड़ रहा हूँ मैं,
इस जीवन के उतार-चढ़ाव में
भूल-भुलैयाओं में घिरा जरुर हूँ मैं,
पर मंजिलों की तलाश में आगे बढ़ रहा हूँ मैं।

ऐसे तो ज़माने में बहुत दर्द हैं, दु:ख है
उन्हें देखता हूँ तो अपने इस दर्द को भूल जाता हूँ मैं,
आगे बढ़ रहा हूँ मैं।

लड़ाई जारी रखी है ज़िन्दगी में,
इसलिए तो लड़ रहा हूँ मैं
दु:ख हो या सुख जीवन के दो पहलू हैं,
इन्हीं पहलू में ज़िन्दगी को जी रहा हूँ मैं
टूट गया हूँ अपने दुखों से, फिर भी हारा नहीं हूँ मैं।

जीवन के संघर्षों की इस लड़ाई में जीतने के लिए लड़ रहा हूँ मैं,
आगे बढ़ रहा हूँ मैं।

हर दौर में समय एक जैसा नहीं रहता,
इसीलिए सकारात्मकता के दामन को पकड़ कर आगे बढ़ रहा हूँ मैं।
टूट गया हूँ अपने दुखों से, फिर भी हारा नहीं हूँ मैं॥