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तुझको कोटि नमन उन्नीस

अवधेश कुमार ‘अवध’
मेघालय
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मिला बहुत खोया तनिक,
प्यारा वर्ष उनीस।
करो पूर्ण हर कामना,
सादर स्वागत बीस॥

तीन सौ सत्तर का कलंक तूने माथे से धोया था।
काश्मीर की धवल कड़ी को लेकर हार पिरोया था॥
मर्दों की मनमानी के वो तीन तलाक मिटा डाला।
इसी साल में बंद हो गया महिलाओं के संग हलाला॥
लगा न कोई लागत फीस।
तुझको कोटि नमन उन्नीस॥

दुश्मन के घर में घुसकर सेना ने कैम्प उजाड़ दिया।
पी ओ के के सीने पर इक धवल तिरंगा गाड़ दिया॥
चूम लिया चंदा का चेहरा अंतरिक्ष में इसरो ने।
धरती ने यूँ जश्न मनाया जैसे भूले- बिसरों ने॥
बोल उठी ये सदी इक्कीस।
तुझको कोटि नमन उन्नीस॥

सी ए ऐक्ट डरा डाला है घुसपैठी नापाकों को।
घर में छुपे हुए भेदी को आस्तीन के साँपों को॥
और कई धाराओं पर भी बेहतर चर्चा जारी है।
बलात्कारियों के सम्मुख अब खड़ी हो गई नारी है॥
जनता रही हाथ को मीस।
तुझको कोटि नमन उन्नीस॥

सकल घरेलू उत्पादों में पहले से हम पिछड़ गये।
राष्ट्रवाद को हल करने में अर्थवाद में उखड़ गये॥
किन्तु नहीं,अफसोस हमें हैं अपनी छोटी चूकों पर।
जल्दी ही काबू पा लेंगे छोटी-मोटी चूकों पर॥
भला करेंगे हरि जगदीश।
तुझको कोटि नमन उन्नीस॥

चेहरे सारे साफ हो गए चमचों एवं भक्तों के।
वर्षों से जो छुपे हुए थे गुंडागर्दी दस्तों के॥
जनता देख रही है सारे नेताओं के गोरख धंधे।
राजनीति की लाशों को अब नहीं मिलेंगे घर के कंधे॥
जन-जन बनता न्यायाधीश।
तुझको कोटि नमन उन्नीस॥

परिचय-अवधेश कुमार विक्रम शाह का साहित्यिक नाम ‘अवध’ है। आपका स्थाई पता मैढ़ी,चन्दौली(उत्तर प्रदेश) है, परंतु कार्यक्षेत्र की वजह से गुवाहाटी (असम)में हैं। जन्मतिथि पन्द्रह जनवरी सन् उन्नीस सौ चौहत्तर है। आपके आदर्श -संत कबीर,दिनकर व निराला हैं। स्नातकोत्तर (हिन्दी व अर्थशास्त्र),बी. एड.,बी.टेक (सिविल),पत्रकारिता व विद्युत में डिप्लोमा की शिक्षा प्राप्त श्री शाह का मेघालय में व्यवसाय (सिविल अभियंता)है। रचनात्मकता की दृष्टि से ऑल इंडिया रेडियो पर काव्य पाठ व परिचर्चा का प्रसारण,दूरदर्शन वाराणसी पर काव्य पाठ,दूरदर्शन गुवाहाटी पर साक्षात्कार-काव्यपाठ आपके खाते में उपलब्धि है। आप कई साहित्यिक संस्थाओं के सदस्य,प्रभारी और अध्यक्ष के साथ ही सामाजिक मीडिया में समूहों के संचालक भी हैं। संपादन में साहित्य धरोहर,सावन के झूले एवं कुंज निनाद आदि में आपका योगदान है। आपने समीक्षा(श्रद्धार्घ,अमर्त्य,दीपिका एक कशिश आदि) की है तो साक्षात्कार( श्रीमती वाणी बरठाकुर ‘विभा’ एवं सुश्री शैल श्लेषा द्वारा)भी दिए हैं। शोध परक लेख लिखे हैं तो साझा संग्रह(कवियों की मधुशाला,नूर ए ग़ज़ल,सखी साहित्य आदि) भी आए हैं। अभी एक संग्रह प्रकाशनाधीन है। लेखनी के लिए आपको विभिन्न साहित्य संस्थानों द्वारा सम्मानित-पुरस्कृत किया गया है। इसी कड़ी में विविध पत्र-पत्रिकाओं में अनवरत प्रकाशन जारी है। अवधेश जी की सृजन विधा-गद्य व काव्य की समस्त प्रचलित विधाएं हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा एवं साहित्य के प्रति जनमानस में अनुराग व सम्मान जगाना तथा पूर्वोत्तर व दक्षिण भारत में हिन्दी को सम्पर्क भाषा से जनभाषा बनाना है। 

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