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हिंदी मन के भावों को प्रकट करने में अधिक सक्षम

दिल्ली।

हिंदी भाषा हो अथवा कोई अन्य भाषा, भाषा मन के भावों को प्रकट करती है। हिंदी भाषा का यह वैशिष्टय है कि, वह मन के भावों को प्रकट करने में अन्य भाषाओं की तुलना में अधिक सक्षम है। भारतीय संस्कृति के लिए प्रेम एक आदर्श है। हमारे यहां प्रेम में ब्रेक-अप नहीं होता, बल्कि साँसें ब्रेक लेती हैं।
यह बात हिंदी साहित्य भारती द्वारा हंसराज कॉलेज (दिल्ली) के सभागार में आयोजित अंतरराष्ट्रीय उपवेशन कार्यक्रम के दूसरे दिन प्रथम सत्र में मुख्य अतिथि पद से राज्यसभा सांसद व सुविख्यात वक्ता डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने कही। मंच पर बैद्यनाथ लाभ, पद्मश्री विष्णु पांड्या, विनोद कुमार मिश्र और आचार्य देवेंद्र देव मौजूद रहे। भारती का यह वार्षिक वैचारिक मंथन सत्र ८ मार्च से शुरू हुआ। इसमें देश-विदेश के सुविख्यात साहित्यकारों, हिन्दी भाषा के मूर्धन्य विद्वानों, संस्कृति प्रेमियों, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं व शिक्षाविदों ने सहभागिता दर्ज करवाई।
सत्र में भारती के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रविंद्र शुक्ल ने कहा कि, अन्य सभी पंथ संप्रदाय या धर्म किसी एक व्यक्ति या वर्ग के लिए हो सकते हैं, लेकिन सनातन धर्म संपूर्ण विश्व और ब्रह्मांड के लिए है।
इस अवसर पर जाहन्वी के सम्पादक भारत-भूषण चड्ढा, साधना टी.वी. के संचालक राकेश गुप्ता व डॉ. नीलोफर जी को ‘संस्कृति साधक सम्मान’ दिया गया। दूसरे सत्र में श्री देव, डॉ. अरुण सज्जन व श्री पंड्या आदि की पुस्तक का विमोचन अतिथियों ने किया।
तीसरे सत्र में विराट कवि सम्मेलन हुआ, जिसमें डॉ. शुक्ल, आचार्य देवेंद्र देव, कुलदीप अंगार, डॉ. देवेंद्र तोमर और डॉ. सुनीता मंडल आदि रचनाकारों ने प्रभावी काव्य पाठ कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
इस अवसर पर सभागार में ३ दिनी उपवेशन के एक सत्र को उत्तराखंड सरकार के मंत्री सुबोध उनियाल ने भी सम्बोधित किया। इसी क्रम में डॉ. करुणा शंकर उपाध्याय ने कहा कि, संभावना यह भी है कि आगे आने वाले १० वर्षों में इंग्लैंड, अमेरिका के प्रधानमंत्री तथा राष्ट्र प्रमुख हिन्दी बोलने वाले होंगे। इस सत्र को माधवेन्द्र प्रसाद पाण्डेय, डॉ. सज्जन ने भी संबोधित किया।
कार्यक्रम में सुदर्शन टीवी के संस्थापक सुरेश चव्हाण को संस्कृति साधक सम्मान, प्रो. कमलप्रभा कपानी को हिन्दी साधक सम्मान, डॉ. के. साईं लता को हिंदी साधक सम्मान व जय वर्मा को संस्कृति साधक सम्मान से विभूषित किया गया।
श्री चव्हाण ने राष्ट्र के सम्मुख उपस्थित चुनौतियों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए उसमें लेखकों व साहित्यकारों आदि के दायित्व के प्रति सचेत किया।
इस अवसर पर केन्द्रीय मार्गदर्शक महामण्डलेश्वर शाश्वतानंद गिरि जी महाराज, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान (आगरा) के निदेशक सुनील कुलकर्णी, साध्वी ममता जी कार्यक्रम संयोजक डॉ. रमा सहित देश-विदेश से अतिथि, विद्वान वक्ता, विभागाध्यक्ष, साहित्यकार, बुद्धिजीवी और पत्रकार उपस्थित रहे। स्वागत उद्बोधन डॉ. रमन शर्मा ने दिया।
कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. विनय कुमार सिंह ने किया। आभार प्रदर्शन राजीव शर्मा द्वारा किया गया।
🔷वित्त का सदुपयोग करना बहुत कठिन-डॉ. दवे
‘वित्तीय-प्रबंधन’ विषय को लेकर सत्र को संबोधित करते हुए मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे ने कहा कि, वित्त का प्रबंध करना बहुत आसान है, जबकि सदुपयोग करना बहुत कठिन है। डॉ. दवे ने अनेक उदाहरण देते हुए बताया कि, वित्त का सदुपयोग पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ किया जाना चाहिए।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुम्बई)