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ख़्याल

तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान) 
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धुँधलका शाम का
गहराने लगा,
आँच सूरज की
मंद पड़ने लगी,
शाम ने धीरे से
करवट बदली,
सोये अरमान फिर,
मचलने लगे।
खुल के बिखरे
तेरी यादों के गेसू,
मेरे जज़्बात ने
फिर प्यार से,
सँवारा इनको।
तेरे अहसास ने,
फिर रूह को
छुआ मेरी,
रात ने ज्यूँ ही
फैलायी बाँहें,
समेटे थे,
जो दिनभर ख़्याल
बेख़्याली में,
पलकों की
कोरों पे फिर…
बिखर गएll

परिचय-श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।

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