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…क्योंकि,अपनी लड़ाई मांस-लहू से नहीं

बुद्धिप्रकाश महावर मन
मलारना (राजस्थान)

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इंसान के चरित्र में यह खूबी हमेशा ही रही है कि,वह दूसरों के कार्य की अक्सर आलोचना करता रहता है,उनकी ओर उंगली करता रहता है,परंतु यह नहीं देख पाता है कि बाकी की उंगलियां स्वयं की ओर इशारा करती है। यह तो इंसान की प्रकृति है। वह दूसरों से सकारात्मक बदलाव की अपेक्षा करता है,परंतु दूसरों के लिए खुद में बदलने की पहल नहीं कर पाता है,तभी तो मनुष्य के विचारों के विरोध में विरोधाभास उत्पन्न हो जाता है,जिसके परिणाम स्वरूप उसके कार्य और व्यवहार में बदलाव नजर आने लगता है। वह यह नहीं जान पाता कि ये छोटे-छोटे विरोधाभास एक दिन उसके सामने बहुत बड़ी मुश्किल उत्पन्न कर सकते हैं। वह मन ही मन विरोधाभासी को अपना शत्रु मानने लगता है। परिणाम यह होता है कि,वह हर कार्य या तो उसे चिढ़ाने के लिए करने लगता है या फिर उसे नीचा दिखाने के लिए करता है। मानता
हूँ कि यह माना कि यह सामान्य प्रकृति है,जिसके वशीभूत वह ऐसा करने को विवश होता है,परंतु वह यहां यह भूल अवश्य कर रहा है कि ऐसा करने से सिर्फ विरोधाभासी का अहित कर रहा हैं। नहीं,नहीं इतना ही सोचना उसके लिए आत्मघाती साबित हो सकता है। क्या वह ऐसा करके शांति से रह पाएगा ? क्या वह ऐसा करके सुख की नींद सो पाएगा ? क्या वह ऐसा करके अपने-आपको ज्ञानी समझ लेगा ? नहीं,नहीं ऐसा कदापि नहीं हो सकता। प्राचीन ग्रंथों में भी लिखा है-जो व्यक्ति दूसरों का अहित करता है,दूसरों का बुरा करता है,अंततःउसी का बुरा होता है। कई बार मनुष्य दुर्भावना और पूर्वाग्रहों के कारण खुद के भले के लिए दूसरों का अहित कर बैठता है,परंतु इसका आशय यह कदापि नहीं होना चाहिए कि हम भी उसका बुरा करें। उससे नाता तोड़कर दुश्मनी निभाएं। हमें चाहिए कि उसके सारे दुर्गुणों को माफ कर एक सच्ची मानवता का व्यवहार करें,परन्तु माफी देना बहुत कठिन कार्य है। हर कोई आसानी से माफ नहीं कर सकता,पर पहल तो करनी ही होगी,क्योंकि जब तक हम विरोधाभासी को हृदय तल से माफ नहीं कर देते,तब तक हमारे अंतर्मन में उथल-पुथल मची रहती है। हमारे दिन का चैन और रात की नींद हराम हो जाती है। हमारा मस्तिष्क उसे सोचता रहता है,और जब हम विरोधाभासी को माफ कर देते हैं,उससे प्रेम के दो बोल बोल लेते हैं,तब हमें लगता है मानो हमारे मन से पहाड़ जैसा भार उतर गया है,और हम वैमनस्य की जंजीरों से आजाद हो गए हैं। हमें हमेशा सुखी जीवन के लिए ऐसी सकारात्मक पहल करनी चाहिए,क्योंकि अपनी लड़ाई मांस-लहू से नहीं है,वरन हाड़-मांस औऱ लहू से बने पुतले में छिपे शैतान से है। उसकी विध्वंसकारी विचारधारा से है। हमें उन पर प्रहार कर एक नए जीवन की शुरुआत करनी चाहिए। अपने दुश्मन को भी नई खुशियों की सौगात देनी चाहिए।

परिचय-बुद्धिप्रकाश महावर की जन्म तिथि ३ जुलाई १९७६ है। आपका वर्तमान निवास जिला दौसा(राजस्थान) के ग्राम मलारना में है। लेखन में साहित्यिक उपनाम-मन लिखते हैं।हालांकि, एक राष्ट्रीय साहित्यिक संस्था ने आपको `तोषमणि` साहित्यिक उप नाम से अलंकृत किया है। एम.ए.(हिंदी) तथा बी.एड. शिक्षित होकर आप अध्यापक (दौसा) हैं। सामाज़िक क्षेत्र में-सामाजिक सुधार कार्यों,बेटी बचाओ जैसे काम में सक्रिय हैं। आप लेखन विधा में कविता,कहानी,संस्मरण,लघुकथा,ग़ज़ल, गीत,नज्म तथा बाल गीत आदि लिखते हैं। ‘हौंसलों के पंखों से'(काव्य संग्रह) तथा ‘कनिका'( कहानी संग्रह) किताब आपके नाम से आ चुकी है। सम्मान में श्री महावर को बाल मुकुंद गुप्त साहित्यिक सम्मान -२०१७,राष्ट्रीय कवि चौपाल साहित्यिक सम्मान-२१०७ तथा दौसा जिला गौरव सम्मान-२०१८ मिला हैl आपके लेखन का उद्देश्य-सामाजिक एवं राष्ट्रीय जागृति,पीड़ितों का उद्धार, आत्मखुशी और व्यक्तिगत पहचान स्थापित करना है।

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