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२६ जनवरी पावन बेला

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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स्वतंत्र देश और हमारी जिम्मेदारियां….

जिन सूरमाओं ने रक्तिम रंग से, खेली क्रांति की होली थी
भारत की स्वतंत्रता खातिर, खाई वक्ष स्थल में गोली थी
इंकलाब की जिनके मुँह में, रहती सदा एक ही बोली थी
वह नर के वेश में नारायण की,
अवतारी भारत में टोली थी
इतिहास छुपाया, सच न बताया,
इज्ज़त, माटी में रोली थी ?

जेल गए वे तख्त चढ़े, कलई अंग्रेजों की उन्होंने खोली थी
हर वार सहे हर प्रहार सहे पर, उफ तक न उन्होंने बोली थी
शूरवीर उन महारथियों की, एक नियत, एक ही तो बोली थी
इंकलाब ज़िंदाबाद, गुलामी की बेड़ी उन्होंने ही खोली थी
इतिहास छुपाया, सच न बताया,
इज्जत, माटी में रोली थी ?

सरताज तिरंगा भारत का बनाने हेतु, दुश्मनी तब मोली थी
जुर्म सहे लाख अत्याचार भी, कोड़े खा-खा खाल खोली थी
निज लहू के पावन जन जल से,
गुलामी की कीच धो ली थी
फिरंगी को भगाकर भारत से, भारत माँ की जय बोली थी
इतिहास छुपाया सच न बताया,
इज्जत, माटी में रोली थी ?

२६ जनवरी की पावन बेला, यूँ ही तो न भारत में आई थी
इस दिन को देखने खातिर, पूर्वजों ने लड़ी कड़ी लड़ाई थी
१५ अगस्त को आजादी पाकर,
संविधान सभा बनाई थी
तब जाकर २६ जनवरी की, यह सदपावन बेला आई थी
किताबी ज्ञान में नेता जी की, असलियत काहे छुपाई थी ?

आजाद हुआ फिर भारत धन्य,
संविधानी पोथी बनाई थी
२६ जनवरी १९५० को तब, नियमावली भी लागू कराई थी
इस बीच फिरंगी ने अपनी, ‘फूट डालो’ की चाल चलाई थी
भारत के टुकड़े करने हेतु, हिन्दू-मुस्लिम में डाली लड़ाई थी
किताबी ज्ञान में नेता जी की, असलियत काहे छुपाई थी।

नई पीढ़ी के लोग क्या जानें, कि ये घड़ियाँ कैसे आई थी ?
पुरखों ने घड़ियाँ पाने खातिर, खून की नदियाँ जो बहाई थी
कई कोखें, मांगें उजड़ी,
तब जाकर आजादी आई थी
छुप-छुप कर गोरों से लड़े- भिड़े,
तब जाकर आजादी पाई थी।
किताबी ज्ञान में नेता जी की, असलियत काहे छुपाई थी॥