कुल पृष्ठ दर्शन : 368

You are currently viewing जय गणतंत्र,जय भारत

जय गणतंत्र,जय भारत

डाॅ. मधुकर राव लारोकर ‘मधुर’ 
नागपुर(महाराष्ट्र)

*************************************************************************

गणतंत्र दिवस स्पर्धा विशेष………


गणतंत्र दिवस के दिन,प्रातः ही दीक्षा,स्कूल जाने तैयार हो गयी थी।दीक्षा को अपने मित्रों के साथ,गीत और नृत्य की प्रस्तुति देनी थी। दीक्षा ने अपने पिता सुरेश को आवाज दी-“बापू,जल्दी तैयार हो जाओ। मुझे स्कूल जल्दी पहुंचना है। पता है ना,आज 26जनवरी है।”
सुरेश ने कहा-“हाँ बिटिया,बस दो मिनट में आ रहा हूँ। मुझे पता है तुम्हारा आज स्कूल में कार्यक्रम है।”
सुरेश ने सायकिल निकाली और दीक्षा को बिठाकर स्कूल के लिए चल पड़ा।
दीक्षा सातवीं कक्षा की विद्यार्थी थी और सुरेश का परिवार गरीब था,परंतु उसे पता था कि लड़कियों की शिक्षा बहुत जरूरी है,ताकि वह समाज में, अपना मुकाम हासिल कर सके। दीक्षा पढ़ाई में हमेशा अव्वल आती थी। उसे पढ़ाई के साथ ही गायन और नृत्य में भी रूचि थी।
दीक्षा ने अपने पिता से पूछा-“बापू हम २६ जनवरी पूरे देश में क्यों मनाते हैं। मुझे बताईये।”
सुरेश-“बिटिया आज से ७० साल पहले हमारे देश में संविधान लागू हुआ था। आजादी मिलने के बाद। जिसमें नियम,कानून,कर्तव्य, अधिकार,जाति,भाषा,सभी वर्गों को समान अधिकार,शिक्षा,स्वास्थ्य वगैरह के लिखित नियम बनाये गये थे। उसी को याद करने के लिए हर साल हम आज के दिन,अपना गणतंत्र दिवस मनाते हैंl”
२६ जनवरी का महत्व दीक्षा को समझ में आ गया था। इसी बीच रास्ते में कागज से बना राष्ट्रीय ध्वज सड़क पर पड़ा हुआ सुरेश को दिखाई दिया।उसने सायकिल रोककर,झंडा उठाया और दीक्षा को दे दिया,ताकि ध्वज का अपमान ना हो।
दीक्षा ने पूछा-“बापू तुमने झंडा जमीन से उठाकर,मुझे क्यों दिया। बताओ ना।”
सुरेश ने कहा-“बिटिया यह हमारे देश का राष्ट्रीय ध्वज है। इसको प्राप्त करने के लिए हमारे देश में,लाखों ने अपना तन-मन,अपना सभी कुछ कुर्बान किया है। तब जाकर हमें आजादी मिली थी। हम अपने राष्ट्रीय ध्वज को जमीन पर पड़ा नहीं रहने दे सकते हैं और किसी भी तरह इसका अपमान भी नहीं सह सकते हैं। इसका अपमान करना देश के साथ गद्दारी करने जैसा ही है।”
स्कूल आ गया था। कार्यक्रम की तैयारी शुरू की जा चुकी थी। दीक्षा को देखते ही शिक्षिका ने उसे तुरंत बुलवाया और ड्रेसिंग रूम ले गयी।
सुरेश ने सोचा,आज बिटिया का कार्यक्रम देखा जाये और इसी तरह गणतंत्र दिवस मनाया जाये। उसने अपने मालिक को फोन किया और कहा,वह कुछ विलंब से काम पर आएगा।
पहले कार्यक्रम का उद्घाटन राष्ट्रीय ध्वज फहराकर विधिवत किया गया। मुख्य अतिथि का स्वागत किया गया। गीत और नृत्य प्रस्तुत किया गया। दीक्षा ने बहुत अच्छी प्रस्तुति दी। सभी ने उसकी तालियाँ बजाकर प्रशंसा की।
मुख्य अतिथि ने भाषण देते समय दीक्षा को स्टेज पर बुलवाया और दीक्षा से कहा-“तुमने नृत्य और गीत बहुत अच्छा प्रस्तुत किया है। यह तुम्हें किसने सिखाया है ?”
दीक्षा ने उनसे कहा-“सर,नृत्य तो मुझे टीचर ने सिखाया है और गीत मेरी माँ ने लिखा है।”
मुख्य अतिथि प्रसन्न हुए। उन्होंने दीक्षा को १०१ रूपये नकद इनाम स्वरूप दिया और प्राचार्य से कहा कि,दीक्षा को प्रशंसा पत्र दिया जाए। इस बच्ची ने आपके स्कूल का नाम रौशन किया है।
अपने भाषण को समाप्त कर मुख्य अतिथि ने दीक्षा को स्टेज पर बुलवाकर कहा-“तुम आज के दिन के बारे में हम सभी को कुछ कहो।”
दीक्षा ने माइक पर वह सभी कुछ कहा, जो उसके पिता ने आते समय विस्तारपूर्वक कहा था। सभी तालियां बजाने लगे। अंत में मुख्य अतिथि ने कहा-“मेरे साथ सभी बोलिए, जय गणतंत्र,जय भारत।”

परिचय-डाॅ. मधुकर राव लारोकर का साहित्यिक उपनाम-मधुर है। जन्म तारीख़ १२ जुलाई १९५४ एवं स्थान-दुर्ग (छत्तीसगढ़) है। आपका स्थायी व वर्तमान निवास नागपुर (महाराष्ट्र)है। हिन्दी,अंग्रेजी,मराठी सहित उर्दू भाषा का ज्ञान रखने वाले डाॅ. लारोकर का कार्यक्षेत्र बैंक(वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त)रहा है। सामाजिक गतिविधि में आप लेखक और पत्रकार संगठन दिल्ली की बेंगलोर इकाई में उपाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-पद्य है। प्रकाशन के तहत आपके खाते में ‘पसीने की महक’ (काव्य संग्रह -१९९८) सहित ‘भारत के कलमकार’ (साझा काव्य संग्रह) एवं ‘काव्य चेतना’ (साझा काव्य संग्रह) है। विविध पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी को स्थान मिला है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में मुंबई से लिटरेरी कर्नल(२०१९) है। ब्लॉग पर भी सक्रियता दिखाने वाले ‘मधुर’ की विशेष उपलब्धि-१९७५ में माउंट एवरेस्ट पर आरोहण(मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व) है। लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी की साहित्य सेवा है। पसंदीदा लेखक-मुंशी प्रेमचंद है। इनके लिए प्रेरणापुंज-विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन(नागपुर)और साहित्य संगम, (बेंगलोर)है। एम.ए. (हिन्दी साहित्य), बी. एड.,आयुर्वेद रत्न और एल.एल.बी. शिक्षित डाॅ. मधुकर राव की विशेषज्ञता-हिन्दी निबंध की है। अखिल भारतीय स्तर पर अनेक पुरस्कार। देश और हिन्दी भाषा के प्रति विचार-
“हिन्दी है काश्मीर से कन्याकुमारी,
तक कामकाज की भाषा।
धड़कन है भारतीयों की हिन्दी,
कब बनेगी संविधान की राष्ट्रभाषा॥”

Leave a Reply