कुल पृष्ठ दर्शन : 216

नियम तो एक सजा है

संदीप सृजन
उज्जैन (मध्यप्रदेश) 
******************************************************

हम भारत के लोग हमेशा से नियम तोड़ने में विश्वास रखते हैं। नियम में रहे तो क्या जीवन। जीवन तो अलमस्त हो,तभी मजा है। नियम तो वैसे भी गले में रस्सी जैसा होता है। साला एक सीमा में रहो,इससे ज्यादा कुछ मत करो,पर हम तो कुछ अलग करने में विश्वास रखते हैं,और नियम-कानून इन सबको तोड़ कर ही सब कुछ करते हैं।

सरकार ने जब से एकल उपयोगी(सिंगल यूज)प्लास्टिक` पर प्रतिबंध लगाया है,बाजार में,पार्टीयों में तांबे के लोटे और स्टील के गिलास फिर से अपना अस्तित्व जमाने के लिए प्रयासरत हैं, लेकिन कई सुधिजन हैं जो लोटे और स्टील के गिलास को हेय दृष्टि से देखते हुए बाजार से दबे-छुपे जुगाड़ लगाकर डिस्पोजल गिलास,कटोरी और चम्मच से ही पार्टीयों में मजे उड़ा रहे हैं। कोई सरकारी नियम का हवाला दे,तो कहते हैं-“नियम में मजा लिया तो क्या मजा है,नियम तो एक सजा है।”

स्वच्छ भारत अभियान चलाया जा रहा है। हमसे ही कर की अतिरिक्त राशि ले कर नगर पालिक निगम हमारे शहर को साफ-सुथरा बनाने में लगी है,ताकि भविष्य में नम्बर १ का पुरस्कार मिल जाए और नेता व अधिकारी तरह-तरह से अनुरोध कर रहे हैं कि,शहर साफ रखें,गंदगी न फैलाएं,वरना जुर्माना लगेगा,लेकिन मजाल है कि हम नियम का पालन करें। अभी नवरात्र में खीर और खिचड़ी का प्रसाद मंदिर के बाहर सड़क पर लोगों को पकड़-पकड़ कर बांटा। लोगों ने भी खाया और दोना सड़क पर फेंक कर चल दिए। सार्वजनिक रूप से नियम तोड़ा,पर किसी अधिकारी के बाप की ताकत नहीं कि,प्रसाद बांटने या खाने वाले पर जुर्माना लगा सके। सड़क पर बारात और जुलूसों में तो ये नियम डंके की चोट पर हम तोड़ते हैं।

चौराहे पर संकेतक तोड़ कर निकलना तो जैसे गर्व की बात हो, इस तरह से लोग लाल बत्ती में तेज गति से निकलते हैं,जैसे- नियम इनके बाप की जागीर हो। और जो नहीं निकल पाते या वर्दी वाले के डर के मारे हिम्मत नहीं कर पाते,उनका काम नियम की दुहाई देना और मन मसोस कर हरी बत्ती का इंतजार होता है।

मंदिर हो या सिनेमा घर,कतार तोड़कर नियम विरुद्ध जुगाड़ लगा कर आगे पंक्ति में लग कर होशियार बनने का अवसर कोई भारतवासी नहीं चूकता। ये बात अलग है कि,लाख कोशिश के बावजूद कोई पहचान वाला नहीं दिखे और कोई दूसरा जुगाड़ लगा कर निकल जाए तो ईमानदारी की दुहाई देने लगते हैं।

रेल की टिकट खिड़की पर “भय्या रेल निकल जाएगी,प्लीज हमें टिकट ले लेने दीजिए” की स्थिति से लगभग हर कोई वाकिफ है। बाकी लाईन में खड़े ५०-६० लोग बेवकूफ की तरह उस भय्या वाले या वाली को देखते रहते हैं,और वो घर से देरी से आकर सबको धता दे कर नियम विरुद्ध टिकट ले कर खुशी-खुशी प्लेटफार्म की ओर बढ़ जाते हैं। बाकी सब मन ही मन कुढ़ते रहते हैं।

देश की सरकार से लेकर किसी भी छोटे-बड़े आयोजन के मंच का माईक जिनके पास होता है,वो सारे नियम तोड़ने का अधिकार रखता है। दो मिनट का समय दो घंटे में भी पूरा नहीं होता। लगता है ब्रह्मा के दो मिनट को मृत्युलोक में लागू करने का प्रयास कर रहे हैं। जब तक संचालक हाथ में पर्ची न थमा दे,तब तक भरे सदन नियम तोड़ने का मजा लेते रहते हैं।आखिर “नियम से जीए तो क्या जीए,मजा तो नियम तोड़ने में है…।”

Leave a Reply