हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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हिंदी दिवस स्पर्धा विशेष………………..
धरा माथे की बिंदिया है हिन्दी भाषा
,
हिन्द के जन-मन में रचती-बसती हिन्दी भाषा।
विश्व शिखर पर है हिन्दुस्तानी हिन्दी भाषा
,
हिमालय के शिखर से तराइयों तक है हिन्दी भाषा।
हिन्दी भाषा
मान-अभिमान,शान और जान है,
नभ के जैसे दिन में सूरज,रात में तारे और चाँद है।
हिन्दी भाषा
ही तो राम-रहीम,कृष्ण-करीम के मीठे बैन बनी,
तुलसी,रविदास ने हिन्दी भाषा
में ही तो देव-देवों की कथनी-करनी कही।
हिन्दी भाषा
ही तो जननी बंगाली,पंजाबी,मद्रासी और उड़िया की,
हिन्दी भाषा
ने ही तो सभी क्षेत्रीय भाषाओं को ज्ञान की अमृत पुड़िया दी।
टैगोर,मैथिली,निराला जी ने कितने सृजन किए हिन्दी
में,
हिन्दी भाषा
ही तो सबसे सबल,सरल,निर्मल,उज्वल है।
हिन्दी भाषा
मान-सम्मान,गुणगान हर हिन्दुस्तानी दिल में हो,
हिन्दी भाषा
मेरे हिन्द के अम्बर,धरा,समंदर,घटा की हर महफिल में हो।
मैं खुद मूरख अज्ञानी था,जब तक अंजान रहा हिन्दी भाषा
से,
हिन्दी भाषा
को जाना तो मिला जीवन दर्शन का ज्ञान इससे।
शत्-शत् नमन मेरा हिन्द की हिन्दी भाषा
को,
मेरी हर साँस,हर धड़कन अपनी हिन्दी भाषा
पर निछावर होll
परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।