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रामराज्य समरस वतन

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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कौशलेय प्रिय जानकी,रघुनन्दन सुखधाम।
करें लोक कल्याण नित,शरणागत श्रीराम॥

कमलनयन मन दाशरथि,सीतायन आलोक।
जगत रोग छल पाप प्रभु,करो मुक्त हर शोक॥

सकल विश्व संताप को,भय दारुण आतंक।
हरो नाथ रघुवर प्रभो,प्रमुदित जग बिन रंक॥

नैतिकता अनुलेप से,मानवता अभिषेक।
प्रगति प्रीति सच पथ प्रभो,राष्ट्र रहे नित एक॥

रामराज्य समरस वतन,राम नाम अभिराम।
वैदेही रघुनाथ मन,परहित नित सत्काम॥

अग्नि परीक्षा हो न अब,नारी प्रश्न चरित्र।
अब सीता अबला नहीं,अपमानित अपवित्र॥

शिक्षित निर्भय नारियाँ,शक्ति स्वरूपा आज।
आरोहित नित लक्ष्यपथ,बन भारत आवाज॥

आज नहीं खल साहसी,नारी करे ज़लील।
बदल चुका समाज अब,न ऊँच-नीच व भील॥

रघुनायक फिर से उठा,धनु प्रत्यञ्चा बाण।
घूम रहे लंकेश बहु,हरो करो जग त्राण॥

पुरुषोत्तम मर्याद तज,कर रक्षण अस्तित्व।
लदा काल वनवास का,दिखा महा व्यक्तित्व॥

राम नाम संत्रास बन,न्याय गेह अपराध।
अग्नि परीक्षा स्वयं की,निकलो प्रभु निर्बाध॥

प्रश्नचिह्न कलियुग वज़ूद,राम नाम निज नेह।
बिना लाज सम्वेदना,रिपुदमन कर गेह॥

झेल रही माँ भारती,खर दूषण विष दंस।
मणि शंकर दिग्विजय सम,मेघनाद अरु कंस॥

राजनीति फँस व्यूह में,राम राज्य बस नाम।
क्यों उदार बन त्याग सिय,अपराधी बदनाम॥

कवि ‘निकुंज’ बस प्रार्थना,कूच करो संग्राम।
हरो कोख गद्दार प्रभु,भारत हो सुखधाम॥

सत्य न्याय परमार्थ पथ,बढ़े राष्ट्र सम्मान।
धीर-वीर नित शीलता,हो भारत उत्थान॥

फिर गूंजे जन मन वतन,अवध बिहारी श्याम।
सुखदायक सियराम धुन,भक्ति प्रीति अविराम॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥