कुल पृष्ठ दर्शन : 190

You are currently viewing व्यथित प्रकृति

व्यथित प्रकृति

गोपाल चन्द्र मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
************************************************************

प्रकृति और मानव स्पर्धा विशेष……..


मैं प्रकृति,माता भी हूँ तुम्हारी,
स्नेह,ममता के विगलित धारा से-
सम्पदाओं से पूर्ण यह सुंदर विश्व,
उपहार दिया है तुझे,प्यार से।

दर्शन मेरा तुम पाओगे सिर्फ,
अनुभूति की माया से
स्पर्श मेरे हल्के छूने से,
आमेज़ भरी भावना में।

शीत ग्रीष्म से होकर कातर,
रहते हो मेरा ही प्रतीक्षा में
अनुभव करते हो तुम प्रतिपल,
स्नेह मेरी सुखमय निद्रा में।

लेकिन,आज,प्रतिपल का प्रदूषण,
सृष्टि के विरुद्ध विकृत आचरण
विज्ञान के विध्वंसी परीक्षणों से,
मजबूर हुई हूँ मैं महाकाली बनने में।

कभी विध्वंसी तूफान तो,
कभी बुलबुल या ‘फेनी’
अब,तो मैं ‘कोरोना’ बनकर
खेल रही हूँ मौत की होली!

साक्षात मृत्यु को सम्मुख देखकर,
विश्व हुया आज स्तब्ध मेरे डर से।
अभी भी समझो तुम्हारी गलतियां,
विवश हूँ मैं रक्षा करने में॥

परिचय-गोपाल चन्द्र मुखर्जी का बसेरा जिला -बिलासपुर (छत्तीसगढ़)में है। आपका जन्म २ जून १९५४ को कोलकाता में हुआ है। स्थाई रुप से छत्तीसगढ़ में ही निवासरत श्री मुखर्जी को बंगला,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। पूर्णतः शिक्षित गोपाल जी का कार्यक्षेत्र-नागरिकों के हित में विभिन्न मुद्दों पर समाजसेवा है,जबकि सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत सामाजिक उन्नयन में सक्रियता हैं। लेखन विधा आलेख व कविता है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में साहित्य के क्षेत्र में ‘साहित्य श्री’ सम्मान,सेरा (श्रेष्ठ) साहित्यिक सम्मान,जातीय कवि परिषद(ढाका) से २ बार सेरा सम्मान प्राप्त हुआ है। इसके अलावा देश-विदेश की विभिन्न संस्थाओं से प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान और छग शासन से २०१६ में गणतंत्र दिवस पर उत्कृष्ट समाज सेवा मूलक कार्यों के लिए प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और भविष्य की पीढ़ी को देश की उन विभूतियों से अवगत कराना है,जिन्होंने देश या समाज के लिए कीर्ति प्राप्त की है। मुंशी प्रेमचंद को पसंदीदा हिन्दी लेखक और उत्साह को ही प्रेरणापुंज मानने वाले श्री मुखर्जी के देश व हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा एक बेहद सहजबोध,सरल एवं सर्वजन प्रिय भाषा है। अंग्रेज शासन के पूर्व से ही बंगाल में भी हिंदी भाषा का आदर है। सम्पूर्ण देश में अधिक बोलने एवं समझने वाली भाषा हिंदी है, जिसे सम्मान और अधिक प्रचारित करना सबकी जिम्मेवारी है।” आपका जीवन लक्ष्य-सामाजिक उन्नयन है।

Leave a Reply