उमेशचन्द यादव
बलिया (उत्तरप्रदेश)
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प्रकृति और मानव स्पर्धा विशेष……..
यह तो बहुत ही अच्छी बात है कि हम भी प्रकृति के परिवार के सदस्यों में से एक हैं। प्रकृति का परिवार बहुत ही बड़ा है। इसकी कोई सीमा नहीं है। इस धरती पर चल-अचल, सजीव-निर्जीव,दृश्य या अदृश्य रूप में जो कुछ भी है,वह सभी प्रकृति के परिवार का हिस्सा है,जिसमें हम मनुष्य अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इस परिवार के सृजनकर्ता( ईश्वर) ने खुद को भी एक रहस्य बनाया हुआ है। उसके बारे में जानकारी हासिल करना भी एक रहस्य बन जाता है। प्रकृति के इस असीम परिवार में पर्वत,नदियाँ,झरने,कानन, ईंट-पत्थर,मिट्टी,धरती,गगन,अनल,अनिल, सलिल,पशु-पक्षी,नभचर,जलचर और थलचर के साथ सूर्य,चंद्र, सभी नक्षत्रों एवं ग्रहों का समूह आता है। ये सभी मिलकर अपनी मर्यादा में रहकर प्रकृति के सौंदर्य में चार चाँद लगाते हैं। कुदरत के इस करिश्में (सामंजस्य) को देखकर सृष्टिकर्ता भी पल दो पल के लिए सम्मोहित हो जाते होंगे। उन्हें अपनी रचना पर गर्व होता होगा और यह स्वाभाविक भी है। जैसे कि हम सभी अपने बच्चों के अच्छे व्यवहार और उनकी तरक्की से होते हैं।
प्रकृति का यह खुशहाल परिवार बहुत मजबूत और मनोरंजक जीवन जी रहा था, तभी अचानक इस परिवार के लालची स्वभाव के सदस्य मनुष्य के मन में लालच ने घर बनाना शुरू कर दिया। अब नर,जो प्रकृति के परिवार का अहम हिस्सा और सबसे चतुर सदस्य है,उसने स्वार्थ सिद्धि के लिए अपनी मर्यादाओं को लांघ दिया। मतलब यह है कि मनुष्य अपने फायदे के लिए प्रकृति के अन्य सदस्यों जैसे-नदी,पर्वत, हवा,पानी,जंगल,मिट्टी एवं अन्य जीवों को अपना शिकार बनाने लगा। अब आप सोच रहे होंगे कि कैसे ? तो आइए अब थोड़ा विस्तार से चर्चा करते हैं। मनुष्य,अपने मौज़- मस्ती में आकर यह भूल गया कि परिणाम क्या होगा ? उसने आँख बंद कर अपनी जनसंख्या को बढ़ा दिया। अब लोग तो बढ़ते गए,वे रहेंगे कहाँ ? बस अब जंगलों की कटाई शुरू,यहाँ से भी काम नहीं चला तो नदियों और समुद्रों की जमीन भी हथियाने लगा। बड़े-बड़े तालाब और पोखर बिचारे लुप्त हो गए। कुएं,जिनसे मनुष्य अपनी प्यास बुझाता था,अब पैकेट का पानी पीकर उन्हें पाट दिया है। इन जगहों पर अपना घर बना लिया है। अब और जगह नहीं बची है जहाँ वह कब्जा कर सके तो नाले,खेल के मैदान, उद्यान,श्मशान घाट को भी अपने हवाले करते जा रहा है। घरों के ऊपर घर (इमारतें) बनाते जा रहा है जिसमें घुट-घुट कर रह रहा है। अब आप कहेंगे कि हमारा घर तो वातानुकूलित है,तो श्रीमान जी बिजली ना रहने पर देखिए क्या हाल होता है! गद्दे पर भी नींद नहीं आती है। लोग घर के बाहर निकल कर सड़कों पर घूमने लगते हैं। अगर अब भी आपको समझ में नहीं आया है तो आप एक काम कीजिए। गर्मी के मौसम में वातानुकूलन वाले कमरे से बाहर किसी बगीचे में (प्रकृति की गोद)बैठकर देखिए।
क्या आपको पता है! आज हमारा जीवन घुटनभरा क्यों है ? आइए यह भी जान लेते हैं। तो भाई साहब जैसे कि हमने पहले ही बता दिया है कि जनसंख्या बढ़ती गई और हम जलाशयों तथा जंगलों को नष्ट कर अपना आशियाना बनाते गए। तो भाई साहब हमने वहाँ अनेक जीवों को बेघर कर दिया। अनेक जीव,जंगल उजड़ने से मर गए,तो क्या उनकी तड़प हमें लगेगी नहीं! जरुर लगेगी। आप खुद ही एक बार सोच लीजिए,अगर कोई आपको कष्ट देगा तो आप क्या करेंगे ? आप नाराज़ मत होना कि,ये मुझसे ही सवाल पर सवाल पूछे जा रहे हैं,जैसे मैंने ही सारा कुछ किया है! तो बात और आगे बढ़ती चली गई,अब तो खाने की भी समस्या होने लगी क्योंकि जिस जमीन पर हम खेती करते थे उसके अधिकांश भाग पर बड़े-बड़े उद्योग बन गए। मनुष्य ने अपनी निष्ठुरता की सीमा को भी पार कर दिया और जीवों को मारकर खाने लगा। अब आप कहेंगे कि ऐसा तो पहले भी होता था। आदिवासी लोग इस प्रकार ही अपना जीवन जीते थे। तो जनाब वो तो आदिवासी थे,उन्हें हमारे बराबर ज्ञान नहीं था। और उसके अलावा उन्हें अपना जीवन जीने का कोई और साधन भी नहीं था। वे लोग जीने के लिए करते थे और आज का मनुष्य व्यवसाय के लिए करता है। धनवान बनने के लिए करता है,जो सरासर गलत है। यहाँ तक कि कई लोग तो मनोरंजन के लिए भी जीवों की हत्या कर देते हैं। आज मनुष्य इतना क्रूर हो गया है कि पूछिए मत। हमारे भारत में तो अभी कुछ ठीक है। अन्य पड़ोसी देशों में तो जीवों को जिंदा भी खा जाते हैं जैसे कि चीन। चीन वालों का खान-पान बहुत गिरा हुआ है और वे सभी इधर-उधर फैल कर अपनी बुरी आदत भी लोगों में फैला रहे हैं। इन्हीं की देखा-देखी में अन्य लोग भी बहक जाते हैं और मासूम जीवों के साथ अन्याय करते हैं। खैर,इसका पूरा दोष उन्हें नहीं दे सकते,क्योंकि जब तक हम नहीं चाहेंगे तब तक कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। एक बात भी बड़ी अजीब-सी है कि गलती करता कोई एक है,लेकिन उसकी सजा प्रकृति सबको देती है। इसके कुछ उदाहरण हैं।
एक बात और बता दूँ कि हम लोग जो कुछ भी करते हैं,सबका हिसाब भगवान के पास है। अब आप कहेंगे कि जब भगवान के पास हिसाब है तो वे उसी को दंड क्यों नहीं देते हैं जो गलती करता है,सबको क्यों ? तो भाई साहब एक बात जान लिजिए कि गलती करने वाला और उसे देखने वाले सभी दोषी होते हैं क्योंकि अगर देखने वालों ने गलती करने वाले को समझाया या रोका होता तो शायद वह ऐसा नहीं करता। इसलिए प्रकृति सबको दंड देती है। अब उदाहरण देखिए-जब मनुष्य द्वारा प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की जाती है तो वह उन्हें दंडित करने के लिए अनेक तरीके अपनाती है। जैसे-सूखा,बाढ़, सूनामी,भूकम्प,ज्वालामुखी,महामारी (हैजा, कालरा,कोरोना)आदि। इसमें हजारों-लाखों लोगों की अकाल मृत्यु हो जाती है। चारों तरफ़ तबाही मच जाती है। जैसे,अभी चीन से उत्पन्न हुई संक्रमित बीमारी (‘कोरोना’) ने पूरी दुनिया में तबाही मचाई हुई है। इसकी वजह से अब तक चीन,इटली,जापान,भारत सहित अन्य देशों में हजारों लोगों की मौत हो गई है। इस बीमारी की वजह है चीन के लोगों द्वारा साँप,बिच्छू,चूहा,छिपकली,कुत्ता,बिल्ली आदि निरीह जानवरों को खाना और वो भी जिंदा! अब देखिए गलती एक देश ने की,और दंड पूरी दुनिया भोग रही है। इसे ही कहते हैं ‘करे कोई और भरे कोई और’,लेकिन यहाँ तो वे भी भरे हैं जिन्होंने पाप किया। जनाब हम इंसान हैं तो हमारे दिल में इंसानियत भी तो रहना चाहिए-
जीवों पर तुम करो दया,
मत छोड़ो शर्म और हया
‘उमेश’ का यही निवेदन है,
मत खड़ा करो संकट नया।
प्रकृति के परिवार में सुख और शांति तभी होगी,जब इस परिवार का कोई सदस्य किसी दूसरे सदस्य को हानि नहीं पहुंचाएगा। यहाँ भी ठीक वैसे ही है जैसे कि हमारे घर-परिवार में अगर कोई गलती करता है और अन्य लोग जानते हुए भी उसको रोकने का प्रयास नहीं करते हैं,तब मुखिया द्वारा सबको दंडित किया जाता है। विद्यालय में कभी-कभी अध्यापक को भी ऐसा करना पड़ जाता है। जब कोई विद्यार्थी गलती करता है और गुरु जी के पूछने पर कोई नहीं बताता है तो गुरु जी पूरी कक्षा को दंडित करते हैं। तो जनाब, अब से तो सचेत हो जाइए और मित्रों को भी सचेत कीजिए कि अगर कोई हमारी संस्कृति, प्रकृति,समाज और देश के साथ खेलेगा तो हम उसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। आइए,हम सभी मिलकर अपने पर्यावरण की रक्षा के लिए बाध्य हो जाएँ। इसी में सबकी भलाई है। जब प्रकृति के साथ हमारा सामंजस्य ठीक रहेगा, तभी हमारा जीवन सुखमय होगा। हमें ‘जिओ और जीने दो’ की नीति को अपनाकर अहिंसा के मार्ग पर चलना होगा। यही प्रकृति का परिवार होगा और इसी में इसकी सार्थकता है।
परिचय–उमेशचन्द यादव की जन्मतिथि २ अगस्त १९८५ और जन्म स्थान चकरा कोल्हुवाँ(वीरपुरा)जिला बलिया है। उत्तर प्रदेश राज्य के निवासी श्री यादव की शैक्षिक योग्यता एम.ए. एवं बी.एड. है। आपका कार्यक्षेत्र-शिक्षण है। आप कविता,लेख एवं कहानी लेखन करते हैं। लेखन का उद्देश्य-सामाजिक जागरूकता फैलाना,हिंदी भाषा का विकास और प्रचार-प्रसार करना है।