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सामाजिक सम्बन्धों की प्रगाढ़ता से मिटेगी दूरी

श्रीमती अर्चना जैन
दिल्ली(भारत)
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सामाजिक सम्बन्ध और दूरी स्पर्धा विशेष………..


मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। रिश्ते सामाजिक संबंधों का आधार है। रिश्ता चाहे माता-पिता का हो, भाई-बहन का हो,या आस-पड़ोस एवं दोस्ती का हो,प्रत्येक रिश्ते में विश्वास,प्रेम और अपनापन होना बहुत जरूरी है। प्रेम से रहित रिश्ते सिर्फ एक बोझ बन कर रह जाते हैं,और रिश्ते में कड़वाहट मनुष्य में अशांति पैदा करती है।
आजकल की व्यस्त जिंदगी में लोगों के पास समय ही नहीं रहा,जिसके कारण आज रिश्ते कमजोर होते जा रहे हैं,और सामाजिक दूरियां बढ़ रही हैं। सामाजिक सम्बन्धों को प्रगाढ़ बनाए रखने और रिश्तों के बीच बढ़ रही दूरियों को खत्म करने के लिए हमें लोगों की जरूरतों को समझना होगा,ताकि हम एक-दूसरे की सहायता करके सामाजिक संबंधों को स्थापित करके उन्हें मजबूत बना सके। रिश्तों में ऐसी भावना उत्पन्न ही ना होने दें,जिससे सामने वाले को लगे कि वह उसे नजरअंदाज कर रहा है। अगर आप सामने वाले की इच्छाओं की कद्र करते हैं,तो रिश्ते बहुत मजबूत बनते हैं।
सम्बन्धों पर अरस्तु ने कहा है-“मित्र का सम्मान करो ,पीठ पीछे उसकी प्रशंसा करो,और आवश्यकता पड़ने पर उसकी सहायता करो।” सीधी-सी बात है कि ऐसा करने से ही हम सामाजिक संबंधों में अधिक प्रगाढ़ता ला सकते हैं।
रिश्ते मानवीय भावनाओं का प्रतीक होते हैं। एक और जहां हमारे जीवन में कुछ रिश्ते खून के होते हैं, तो कुछ हमारी भावनाओं के ऊपर टिके होते हैं,जो कभी खून के रिश्तों से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं। एक रिश्ता प्रेम पर,विश्वास पर आधारित होता है, जिसे हम अपने कार्यों,अपने व्यवहार एवं प्रेम द्वारा ओर अधिक मजबूत करते हैं। यदि हम किसी अपरिचित व्यक्ति से अच्छा व्यवहार करते हैं तो,उसे भी हम अपना बना लेते हैं,जबकि अपने बुरे व्यवहार के कारण कई बार हम अपने रिश्तेदारों को भी अपने से दूर कर देते हैं।
हमारे बुजुर्ग अधिकतर बताते हैं कि,सामाजिक समरसता के लिए रिश्तों का दृढ़ता से निर्वाह करना आवश्यक होता है।सुख हो या दु:ख दोनों ही परिस्थिति में रिश्तों का प्रभाव देखा जाता है। अपनी खुशी,अपना सुख, रिश्तेदार,आस-पड़ोस,समाज आदि के साथ मिलकर बांट लिया जाता है तो वह सुख दोगुना हो जाता है,और यदि दु:ख में भी हम सभी के साथ खड़े रहते हैं तो वह दु:ख भी आधा हो जाता है। पहले प्रायः सभी एक-दूसरे के दु:ख-सुख में खड़े रहते थे। रिश्तेदार तो बाद में आते,उससे पहले आस-पड़ोस वाले ही सहभागी होते थे,मगर आजकल मोबाइल,टी.वी.,लैपटॉप,अंतरजाल और आदमी के अहम एवं धनाढ्यता ने आपसी प्रेम घटा कर रिश्तों में इतनी दूरियां पैदा कर दी है,जिसका भयंकर परिणाम हमारे सामने आ रहा है। आज हम अपनी ही अम्मा,बाबा,ताऊ-ताई,चाचा-चाची,भैय्या-भाभी आदि के साथ एक ही छत के नीचे रहना पसन्द नहीं करते हैं। हम सब एकल परिवार बनाकर अकेले ही रहना पसन्द करने लगे हैं।
रिश्ते रक्त संबंध के तो होते ही हैं,परंतु यह प्रगाढ़ता अजनबी और पड़ोसियों में भी बन जाती है। रिश्तों का दायरा जब सामाजिक स्तर पर बढ़ता है,तो व्यापक हो जाता है। हम कभी रेल-बस में सफर करते हैं,तो वहां भी अपने व्यवहार और प्रेम के कारण सामने वाले को अपना बना लेते हैं। आज से लगभग ५० वर्ष पहले सामाजिक वातावरण में जो अपनापन देखा जाता था,वह आज के समय में घटता जा रहा है। आज सामाजिक दूरियां बढ़ने लगी है। जीवन में बढ़ रही भाग-दौड़ के कारण भी रिश्तों में काफी बदलाव आ रहे हैं। आज हम इन परिस्थितियों पर विचार करते हैं तो हमें बच्चों,माता-पिता,परिवार,जाति तथा समाज का भविष्य अंधकार में नजर आ रहा है। समर्पण,सामंजस्य,सहिष्णुता से रहित जीवन अब सजा-सा होता जा रहा है। कहना गलत नहीं कि दूरियों से “आजकल तो माता-पिता संतान के घर में मेहमान हो गए हैं।”
प्रदर्शन और प्रतिष्ठा के चक्कर में समय अनुकूल व्यवहार से व्यक्ति ऐसा होता जा रहा है कि हमारा आचरण कैसा है ?, इसका विचार व्यक्ति नहीं कर पा रहा है। पारिवारिक संबंधों का दायरा और दोस्तों तथा गैर पारिवारिक संबंधों के बढ़ते प्रभाव ने रिश्तेदारों को पीछे धकेल दिया है। प्रतिस्पर्धा के इस युग में अपने बालकों को उच्च शिक्षित करने से पहले संस्कारों का पाठ पढ़ाएं और नैतिकता का बीजारोपण करें,एवं रिश्तों को जीवंत बनाने के लिए बालकों को प्रारंभ से ही उच्च संस्कार दें। सदैव याद रखिए कि पारिवारिक रिश्ते-समुदाय में जीवन की नई पीढ़ी को तैयार करने में उत्कृष्ट भूमिका निभाते हैं।
अरस्तु कहते हैं कि,-“अच्छा व्यवहार सभी गुणों का सार है।” आज के दौर में भी सामाजिक संबंधों को ओर अधिक प्रगाढ़ करने के लिए हमें समाज में रहकर सामने वाले व्यक्ति की इच्छाओं को जानना चाहिए। परिस्थितियों को समझना चाहिए और समाज-आसपास के क्षेत्र में रहकर अपने अच्छे व्यवहार से ऐसा परिचय देना चाहिए,जिससे सबका भला हो सके। मात्र अपने लिए नहीं, दूसरों के सुख के लिए भी परोपकार के कार्य करना चाहिए,क्योंकि परोपकार से ही मनुष्य बड़ा बनता है,जबकि स्वार्थ से छोटा हो जाता है। भूखे को भोजन कराना, रोगियों को औषधि देना,अशिक्षित को शिक्षा के साधन उपलब्ध कराना,जरूरतमंद की सहायता करना,व्यापार के क्षेत्र में ईमानदारी से कार्य करना एवं आपस में मैत्री-भाव रखना आदि अनेक गुण हैं, जिनका पालन कर हम सामाजिक रिश्तों की दूरियां कम कर सकते हैं। समाज के सभी बड़ों और मित्रों के साथ शिष्टाचार पूर्वक मिलना चाहिए। अपने से बड़ों का आदर करना,छोटों से प्रेम करना हमारा नैतिक कर्तव्य है। पड़ोसी से सदा अच्छे संबंध बना कर रखना चाहिए,तभी हम सामाजिक रिश्तों में अच्छे संबंध स्थापित कर सकते हैं,भले ही फिर किसी समय हालात में कितनी भी सामाजिक-शारीरिक दूरी हो। अगर मानसिक स्तर पर रिश्ता मजबूत है,तो दूरी से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

परिचय-श्रीमती अर्चना जैन का वर्तमान और स्थाई निवास देश की राजधानी और दिल दिल्ली स्थित कृष्णा नगर में है। आप नैतिक शिक्षण की अध्यापिका के रुप में बच्चों को धार्मिक शिक्षा देती हैं। उक्त श्रेष्ठ सेवा कार्य हेतु आपको स्वर्ण पदक(२०१७) सहित अन्य सम्मान से पुरस्कृत किया जा चुका है। १० अक्टूबर १९७८ को बडौत(जिला बागपत-उप्र)में जन्मी अर्चना जैन को धार्मिक पुस्तकों सहित हिन्दी भाषा लिखने और पढ़ने का खूब शौक है। कार्यक्षेत्र में आप गृहिणी होकर भी सामाजिक कार्यक्रमों में सर्वाधिक सक्रिय रहती हैं। सामाजिक गतिविधि के निमित्त निस्वार्थ भाव से सेवा देना,बच्चों को संस्कार देने हेतु शिविरों में पढ़ाना,पाठशाला लगाना, गरीबों की मदद करना एवं धार्मिक कार्यों में सहयोग तथा परिवारजनों की सेवा करना आपकी खुशी और आपकी खासियत है। इनकी शिक्षा बी.ए. सहित नर्सरी शिक्षक प्रशिक्षण है। आपको भाषा ज्ञान-हिंदी सहित संस्कृत व प्राकृत का है। हाल ही में लेखन शुरू करने वाली अर्चना जैन का विशेष प्रयास-बच्चों को संस्कारवान बनाने के लिए हर सफल प्रयास जारी रखना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार और सभी को संस्कारवान बनाना है। आपकी दृष्टि में पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुन्शी प्रेमचन्द व कबीर दास जी हैं तो प्रेरणापुंज-मित्र अजय जैन ‘विकल्प'(सम्पादक) की प्रेरणा और उत्साहवर्धन है। आपकी विशेषज्ञता-चित्रकला,हस्तकला आदि में है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी हमारी मातृ भाषा है,हमारे देश के हर कोने में हिन्दी का प्रचार-प्रसार होना चाहिए। प्रत्येक सरकारी और निजी विद्यालय सहित दफ्तरों, रेलवे स्टेशन,हवाईअड्डा,अस्पतालों आदि सभी कार्य क्षेत्रों में हिन्दी बोली जानी चाहिए और इसे ही प्राथमिकता देनी चाहिए।

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