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गर्मी की तपन

बोधन राम निषाद ‘राज’ 
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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देखो गर्मी की तपन,छायी है चहुँओर।
तड़प रहे सब जीव हैं,मचा हुआ है शोर॥

तपती धरती आसमां,कलरव नहीं विहंग।
नीर बूँद पाने सभी,हो जाते हैं तंग॥

नदी झील तालाब भी,सूख रहे हैं आज।
नीर बिना क्या जिंदगी,होय नहीं कुछ काज॥

व्याकुल मन लगता नहीं,किसी काम में ध्यान।
ताप बहुत बढ़ने लगा,देखो सकल जहान॥

गर्म हवाएँ हैं चली,झुलस रही है देह।
उमस भरी है देख लो,अपना सारा गेह॥