श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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महिला दिवस स्पर्धा विशेष……
ना हम सभी कभी टूटने पाएँ,ना हम सभी कभी झुकने पाएँ
आओ सब मिल के करें प्रतिज्ञा,हम सभी अपने सम्मान की।
जबसे दुनिया में आई,संपूर्ण ज्ञान को पाई हूँ,
नारी के स्वरुप में मैं,पहले माँ को ही देख पाई हूँ।
बहुत खेल खिलाया दुनिया वालों,मीरा को जहर पिलाया है,
थोड़ी-सी नादानी के चलते,अहिल्या को पत्थर बनाया है।
किसको दोष दिया जाएगा,श्रीराम ही कदम उठाए हैं,
दुनिया की बातों में आ के,श्रीसीता को वन भिजाए हैं।
नारी तेरी भी है अजब कहानी,निभा रही अभी तक रीत पुरानी,
दिल की रोशनी ख्वाबों में गुजरी,रात की नींद बच्चे सुलाने में गुजरी।
खुद ही गीली पर वह सोती,सूखे पर बच्चे को सुलाती,
निज स्वास्थ्य का ख्याल नहीं,घर को बहुत सुन्दर सजाती।
यह थीं पहले की श्री अमर सती,पर हम सब हैं आज की श्रीमती,
अपनी भी खुद ही रक्षा करती हूँ,परिवार की भी सुरक्षा करती हूँ।
नारियों के अन्दर गजब है संबल,नारी पढ़ाई में भी होती है अव्वल,
आज की नारी अब नहीं है बेचारी,राजनीति में भी रहती है आगे नारी।
घर की शोभा है नारी,घर की मर्यादा है नारी,
तुलसी जैसी पूज्यनीय है,गंगाजल के जैसी पावन है।
क्यों समझ लिया तुम दुनिया वालों,मैं हूँ असहाय अबला-सी नारी,
देख लो तुम आगे बढ़ कर के,नारी कर रही विमान की सवारी।
धरती से आकाश तक,ऐसी कोई जगह ही नहीं,
जहाँ महिला अपना परचम लहराया हो नहीं॥
परिचय-श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।