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मेरा जुनून

राधा गोयल
नई दिल्ली
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बैंक के मुख्य द्वार पर सूचनापट्ट लगा हुआ था,जिस पर लिखा था-‘यहाँ हिंदी में लिखे हुए चैक भी स्वीकार किए जाते हैं।’
देखकर दिल बुरी तरह आहत हुआ। आँखें लाल हो गईं। दिल में अंगारे सुलगने लगे। थोड़ी देर बैठ कर स्वयं को संयत किया फिर हिंदी अधिकारी के पास गई।
‘महोदय क्या मैं आपके २ मिनट ले सकती हूँ ?’
बड़े आश्चर्य से ऐसे देखा,मानो कोई अजीब-सा शब्द सुन लिया हो। शायद ‘महोदय’ सुनने की आदत नहीं होगी। २ मिनट बहुत अचम्भित से रहे।
फिर बोले-‘हाँ! कहिए।’
‘श्रीमान! नीचे आपने एक सूचना पट्ट लगा रखा है जिस पर लिखा है यहाँ हिंदी में लिखे हुए चैक भी स्वीकार किए जाते हैं।’
‘हाँ! तो क्या हुआ ? हम हिंदी में लिखे हुए चैक भी ले लेते हैं।’
‘मतलब कि आप अपनी ही राष्ट्रभाषा पर एहसान कर रहे हैं।’
‘बात यह है कि सभी लोग अंग्रेजी में ही चैक भरते हैं।’
‘तो! इससे क्या हुआ…? भले ही कोई अंग्रेजी में चैक भरे,किंतु आपने जो सूचनापट्ट पर लिखा हुआ है कि ‘यहाँ हिंदी में लिखे हुए चैक भी स्वीकार किए जाते हैं,तो यह तो राष्ट्रभाषा का सरासर अपमान है।आप क्या राष्ट्रभाषा पर कोई एहसान कर रहे हैं ?आप तो उससे उसका जो अधिकार है,वो छीन रहे हैं ?
‘मैडम क्या कर सकते हैं ? अब बोर्ड लग चुका है।’
‘तो उससे क्या हुआ..? आप उस पर जिस जगह ‘हिंदी’ है,वहाँ पेंट लगाकर उस पर ‘अंग्रेजी’ लिख सकते हैं ? जिससे पढ़ने में यह अंकित होगा कि…
‘यहाँ अंग्रेजी में लिखे हुए चैक भी स्वीकार किए जाते हैं।’ इससे कम से कम हम हिंदी प्रेमियों की भावना तो आहत नहीं होगी।’
और वाकई दो दिन बाद जाकर देखा तो बैंक में सूचनापट्ट पर लिखा हुआ था-‘यहाँ अंग्रेजी में लिखे हुए चैक भी स्वीकार किए जाते हैं।’
दिल को बड़ा सुकून मिला। यदि जुनून हो तो व्यक्ति बिना शोर मचाए,बिना किसी को विवश किए भी बहुत कुछ कर सकता है। बस जरूरत है केवल सार्थक पहल की।

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