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प्रतीक्षा

राधा गोयल
नई दिल्ली
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आज देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर से उतर गई है,
कोरोना के कहर से यह,सम्पूर्ण विश्व में पसर गई है।

किन्तु इसी महामारी ने दुनिया को इक संदेश दिया है,
भारत की संस्कृति का लोहा,सारे जग ने मान लिया है।

उच्च हमारे जीवन मूल्य,उच्च हमारी परिपाटी थी,
धरा-गगन-जल-वायु-वृक्ष को,देव मान…पूजन करती थी।

हमें लौटना होगा फिर से आज उसी परिपाटी में,
अब भी अगर नहीं चेते,तो मिल जाएंगे माटी में।

आज लघु उद्योगों का विस्तार हमें करना होगा,
स्वदेशी का निर्माण और उपयोग हमें करना होगा।

अलख जगानी होगी हमको देश के हर एक जन- जन तक,
दस्तक देनी होगी देश के,हर एक प्राणी के मन पर।

नहीं प्रतीक्षा करो समय की,नहीं समय बर्बाद करो,
देश को उन्नत करना है,तो देश के हित सन्नद्ध रहो।

कवियों! उठो…वीर रस का तूफान जगाओ,
उठो किसानों! आज खेत की माँग सजाओ।

माताओं-बहनों! निज संस्कृति को अपनाओ,
देश के हित में…निज स्वार्थों की बलि चढ़ाओ।

मोह विदेशी छोड़,स्वदेशी को अपनाओ,
राष्ट्र के नव निर्माण में…सामंजस्य बनाओ।

विश्वगुरु अपने भारत को…पुनः बनाओ,
राष्ट्र के हित में आज कदम से कदम मिलाओ।

देश के हित में ‘कम से कम’,तुम इतना तो कर ही सकते हो,
निज भाषा संस्कृति अपनाकर,देश का मान बढ़ा सकते हो।

करो प्रतीक्षा नहीं समय की,आज से ही इसको अपनाओ,
स्वावलंबन का सूत्र ग्रहण कर,देश के हित भी फर्ज़ निभाओ॥