अमल श्रीवास्तव
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
***********************************
महाभारत में एक प्रसंग आता है-युधिष्ठिर से यक्ष ने पूछा कि,-‘एक सुखी और समृद्ध राष्ट्र की क्या विशेषताएं होती हैं ?’
इस पर युधिष्ठिर ने बताया कि-‘जिसकी सीमाएं निश्चित हो। जिसकी सुगठित सेना हो। जिसके राजकोष की नियमित आय हो। जिसके नागरिकों में देश भक्ति का भाव भरा हो। जिसकी एक निश्चित भाषा हो।’ इसी तरह की कुछ और विशेषताएं बताई।
आज भारत के संदर्भ में सीमा,सेना,राजकोष, नागरिकों की देशभक्ति आदि के बारे में कुछ-कुछ अपवादों और विवादों के वावजूद स्थिरता है, लेकिन राष्ट्र भाषा का प्रश्न आजादी के सत्तर साल बाद भी आज तक अनुत्तरित ही है।
आजादी के बाद भारतीय संघ की भाषा के विषय में के.एम. मुंशी और ए.के. यंगर ने पूरे देश का सर्वे करके यह बताया कि हिंदी भाषा भारत के अधिकांश क्षेत्रों मे पढ़ी,लिखी,बोली,सुनी व समझी जाती है। इस रिपोर्ट के आधार पर १४ सितंबर १९४९ को हिंदी को राज भाषा के रूप मे मान्यता दी गई । भारतीय संविधान के भाग १७ के अनुच्छेद ३४३ से ३५१ में राजभाषा संबंधी प्रावधान किए गए हैं। इसमें हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया।
वर्तमान में देश में लगभग ७० प्रतिशत से ज्यादा लोग हिंदी का प्रयोग करते हैं और विश्व में यह तीसरे क्रम की भाषा है। ऐसी स्थिति में आम नागरिक इसी गफलत में जी रहा है कि हिंदी भारत की राष्ट्र भाषा है,जबकि वास्तविकता यह है कि हिंदी सिर्फ राज भाषा अर्थात सरकारी काम-काज की भाषा के रूप में ही प्रतिष्ठित है। इसमें भी पूरे देश को क,ख,ग श्रेणी में विभाजित किया गया है, सिर्फ क क्षेत्र में ही शत-प्रतिशत काम-काज हिंदी में होता है,शेष क्षेत्रों में स्थिति दयनीय ही है।
अगर ‘राजभाषा’ की जगह ‘राष्ट्रभाषा’ शब्द का इस्तेमाल किया जाता तो किसी तरह के भ्रम की स्थिति उत्पन्न ही नहीं होती। जिस तरह राष्ट्रीय गीत को राजकीय गीत,राष्ट्रीय गान को राजकीय गान, राष्ट्रीय पशु को राजकीय पशु,राष्ट्रीय पक्षी को राजकीय पक्षी,राष्ट्रपति को राजपति कहना उचित प्रतीत नहीं होगा,उसी तरह राष्ट्रभाषा को राजभाषा कहने से भ्रम की स्थिति बनी हुई है। इस भ्रम को दूर करने के लिए राजभाषा की जगह राष्ट्रभाषा शब्द का इस्तेमाल किया जाना ज्यादा उचित और सटीक कहा जाएगा।
अगर हम यह मान भी लें कि राजभाषा ही राष्ट्र भाषा है,और हिंदी भारत की राष्ट्र भाषा है तो उसको उचित सम्मान मिलना ही चाहिए। स्थानीय, क्षेत्रीय,सभी भाषाओं का सम्मान करते हुए हमें हिंदी को उचित स्थान दिलाने का प्रयास करना चाहिए। वर्तमान में व्यवहारिक रूप से हिंदी दोयम दर्जे की भाषा बनी हुई है। सभी जगह अंग्रेजी भाषा का ही बोल-बाला है। अंग्रेजी बोलने वाले को सभ्य, समझदार,पढ़ा-लिखा और हिंदी बोलने वाले को असभ्य,कम योग्य माना जाता है,जबकि हिंदी पूर्ण रूप से वैज्ञानिक भाषा है तथा इसमें विश्व भाषा बनने के पूरे गुण हैं।
आइए हम और आप सब मिलकर हिंदी को संवैधानिक रूप से ‘राष्ट्रभाषा’ का दर्जा दिलाने के साथ ही अपने देश में उचित सम्मान दिलाने और विश्वव्यापी बनाने में प्राण-प्रण से अपना योगदान दें।
परिचय-प्रख्यात कवि,वक्ता,गायत्री साधक,ज्योतिषी और समाजसेवी `एस्ट्रो अमल` का वास्तविक नाम डॉ. शिव शरण श्रीवास्तव हैL `अमल` इनका उप नाम है,जो साहित्यकार मित्रों ने दिया हैL जन्म म.प्र. के कटनी जिले के ग्राम करेला में हुआ हैL गणित विषय से बी.एस-सी.करने के बाद ३ विषयों (हिंदी,संस्कृत,राजनीति शास्त्र)में एम.ए. किया हैL आपने रामायण विशारद की भी उपाधि गीता प्रेस से प्राप्त की है,तथा दिल्ली से पत्रकारिता एवं आलेख संरचना का प्रशिक्षण भी लिया हैL भारतीय संगीत में भी आपकी रूचि है,तथा प्रयाग संगीत समिति से संगीत में डिप्लोमा प्राप्त किया हैL इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकर्स मुंबई द्वारा आयोजित परीक्षा `सीएआईआईबी` भी उत्तीर्ण की है। ज्योतिष में पी-एच.डी (स्वर्ण पदक)प्राप्त की हैL शतरंज के अच्छे खिलाड़ी `अमल` विभिन्न कवि सम्मलेनों,गोष्ठियों आदि में भाग लेते रहते हैंL मंच संचालन में महारथी अमल की लेखन विधा-गद्य एवं पद्य हैL देश की नामी पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती रही हैंL रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी केन्द्रों से भी हो चुका हैL आप विभिन्न धार्मिक,सामाजिक,साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़े हैंL आप अखिल विश्व गायत्री परिवार के सक्रिय कार्यकर्ता हैं। बचपन से प्रतियोगिताओं में भाग लेकर पुरस्कृत होते रहे हैं,परन्तु महत्वपूर्ण उपलब्धि प्रथम काव्य संकलन ‘अंगारों की चुनौती’ का म.प्र. हिंदी साहित्य सम्मलेन द्वारा प्रकाशन एवं प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री सुन्दरलाल पटवा द्वारा उसका विमोचन एवं छत्तीसगढ़ के प्रथम राज्यपाल दिनेश नंदन सहाय द्वारा सम्मानित किया जाना है। देश की विभिन्न सामाजिक और साहित्यक संस्थाओं द्वारा प्रदत्त आपको सम्मानों की संख्या शतक से भी ज्यादा है। आप बैंक विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. अमल वर्तमान में बिलासपुर (छग) में रहकर ज्योतिष,साहित्य एवं अन्य माध्यमों से समाजसेवा कर रहे हैं। लेखन आपका शौक है।