डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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लोक मांगलिक चिन्तना, पूर्णिम शी जयतल सोम।
सियाराम तुलसी लसी, भक्ति प्रेम यश व्योम॥
तुलसी जीवन त्याग का, सियाराम पद भक्ति।
मर्यादा जीवन चरित, संयम धीरज शक्ति॥
राम नाम जप साधना, कीर्ति पताका व्योम।
प्रेम न्याय सद्भावना, मैत्री शीतल सोम॥
सगुण भक्ति हिय राममय, पातिव्रत सिय रूप।
शान्ति कान्ति संकोच का, सदा परीक्षित भूप॥
नीति-रीति-सम्प्रीति का, क्षमा दया खल दण्ड।
तुलसी रामायण चरित, चाहे क्लेश प्रचण्ड॥
खल कामी लोभी असुर, महाशुद्र अभिशाप।
मिले दण्ड पापी सबल, जो दे जग संताप॥
राम हृदय तुलसी लसे, तुलसी हिय रघुवीर।
पवनपुत्र पद भज चरण, संयम जय रणधीर॥
तुलसी-तुलसी सिय चरण, लखन भक्ति पद गेय।
भरत प्रेम आदर्श जग, शत्रुघ्न राजपद धेय॥
असुर भील वानर सखा, शबरी बेर प्रसाद।
विहग जटायु वीरगति, तुलसी रस संवाद॥
‘रामचरित मानस’ मनुज, जीवन दर्शन आज।
रामचन्द्र तुलसी सजे, सजते राम समाज॥
दोहा-चौपाई सृजित, गढ़े सोरठा छन्द।
रामचरित मानस नमन, खिले भक्ति मकरन्द॥
धन्य-धन्य वह था समय, रवि शशि सम कविराज।
सूरदास, तुलसी मुदित, हिन्दी भाषा ताज॥
धन्य-धन्य भारत धरा, है हिन्दी साहित्य।
धन्य सनातन धर्म शुभ, तुलसी कवि औचित्य॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥