दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
*******************************************
जगमग जीवन ज्योति (दीपावली विशेष)…
मन मंदिर में दीप जलाओ,
फैलेगा चारों ओर उजाला
जीवन बनेगा तेरा स्वर्णिम,
मन में रहे नहीं कोई काला।
स्वच्छ मन के निर्मल दीप में,
प्रेम की सुंदर बाती लगाओ
आत्मियता के तेल से भरकर,
जीवन ज्योति आज जगाओ।
दूर होगा सभी कलुष तमहर,
अपनेपन की प्रेम ज्योति से
स्वर्णिम होगा तब नया सवेरा,
खुशियों के अनन्तम मोती से।
बाहर के दीए से तम मिटे रात,
मन के दीप से हमेशा प्रकाश
ज्यों प्रकाश रहता है जीवन में,
सतत ही होता रहता विकास।
असली दिवाली तभी तो होगी,
जब औरों को भी मिले उजाला।
बुरे कामों से बचो इस दिन तुम,
नहीं तो निकल जाएगा दीवाला॥
परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।