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परीमाला के सपने

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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आज रविवार का दिन है और दिन के ११ बज रहे हैं। मैं गिन्नी के वीडियो कॉल का इंतजार कर रही हूँ। गिन्नी मेरी लड़की, जिसका नाम तो गीतिका है मगर प्यार से हम उसे ‘गिन्नी’ कह कर पुकारते हैं। वह बेंगलुरु में नौकरी करती है। उसकी शनिवार-रविवार की छुट्टी रहती है,तभी वह मुझसे इत्मीनान से बातें करती है। दो-चार दिन पहले उसने कहा था कि मैं आपको सरप्राइज दूंगी। मोबाइल की घंटी बजी,मैंने शीघ्रता से मोबाइल ऑन किया-“प्रणाम नानी जी! कैसी हैं आप ?” पटल पर दो बच्चियां हाथ जोड़े खड़ी थी। मैं हैरानी से देखती रह गई क्योंकि गिन्नी के तो बच्चे ही नहीं हैं। उसकी तो एक साल पहले ही शादी हुई है फिर ये दो बच्चियां….मैं सोच रही थी कि पटल पर एक आकृति और उभरी वह गिन्नी की थी। वह मुस्कुरा कर बोली-“मम्मी! कैसी हैं आप ?”
मैंने विस्मय से पूछा,-“मैं तो ठीक हूँ, मगर यह बच्चे…मुझे नानी जी कैसे कह रहे हैं ?”
गिन्नी हँसते हुए बोली,-“यही तो सरप्राइज है। यह परीमाला की बेटियां हैं। परीमाला! मेरी कामवाली,वह तो बिचारी ‘कोरोना’ के काल का ग्रास बन गई और इनके पिता विदेश गए तो वहीं के होकर रह गए। दूसरी शादी भी कर ली और परीमाला से कह दिया,-“तेरे दो लड़कियां हैं। मेरी माँ को वंश चलाने के लिए लड़का चाहिए। तू दे नहीं सकी, तेरी लड़कियां तू जाने।” उसके बाद से परीमाला घर-घर जाकर काम करने लगी। मुझसे कहती थी,-“दीदी! मैं अपनी लड़कियों को खूब पढ़ाऊंगी,उन्हें किसी लायक बनाऊंगी। मेरे लिए तो यही बेटे हैं। मैं ज्यादा से ज्यादा मेहनत करूंगी।”…मगर उसके सपने अधूरे ही रह गए।
‘तालाबंदी’ खुलने पर एक दिन दोनों बच्चियां रोते हुए मेरे पास आईं और बोलीं,-“आंटी! दादी ने हमें घर से निकाल दिया है। हम दो दिन से भूखी हैं। कुछ खाने को दे दो। दो-तीन दिन इन्हें अपने पास रखने के बाद मैंने सोचा क्यों ना इन्हें मैं ही गोद लेकर परीमाला का अधूरा सपना पूरा कर दूं। अब ये मेरे पास ही हैं। ठीक किया ना मैंने!” मेरी आँखों में आँसू छलछला उठे,मैं बोली,-“बहुत अच्छा किया,अब इन्हें अपनी संतान मानो और परीमाला का सपना पूरा करो। उसकी आत्मा यह सब देख कर खुश होगी। तुम जीती रहो। सदा खुश रहो और जीवन में सफलता पाओ।”…बरबस ही मेरे मुख से ढेर सारे आशीर्वाद निकल पड़े।

परिचय–राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।