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नेह नीर मन चाहत

बाबूलाल शर्मा
सिकंदरा(राजस्थान)
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(रचनाशिल्प:१६,१२ मात्राएँ,चरणांत में गुरु गुरु,२२,२११,११२,या ११११)
ऋतु बसंत लाई पछुआई,बीत रही शीतलता।
पतझड़ आए कुहुके,कोयल,विरहा मानस जलता।

नव कोंपल नवकली खिली है,भृंगों का आकर्षण।
तितली मधु मक्खी रस चूषक,करते पुष्प समर्पण।

बिना देह के कामदेव जग,रति को ढूँढ रहा है।
रति खोजे निर्मल मनपति को,मन व्यापार बहा है।

वृक्ष बौर से लदे चाहते,लिपट लता तरुणाई।
चाह लता की लिपटे तरु के,भाए प्रीत मिताई।

कामातुर खग मृग जग मानव,रीत प्रीत दर्शाए।
कहीं विरह नर कोयल गाए,कहीं गीत हरषाए।

मन कुरंग चातक सारस वन,मोर पपीहा बोले।
विरह बावरी विरहा तन में,मानो विष मन घोले।

विरहा मन गो गौ रम्भाएँ,नेह नीर मन चाहत।
तीर लगे हैं काम देव तन,नयन हुए मन आहत।

काग कबूतर बया कमेड़ी,तोते चोंच लड़ाते।
प्रेमदिवस कह युगल सनेही,विरहा मनुज चिढ़ाते।

मेघ गरज नभ चपला चमके,भू से नेह जताते।
नीर नेह या हिम वर्षा कर,मन का चैन चुराते।

शेर शेरनी लड़ गुर्रा कर,बन जाते अभिसारी।
भालू चीते बाघ तेंदुए,करे प्रणय हित यारी।

पथ भूले आए पुरवाई,पात कली तरु काँपे।
मेघ श्याम भंग रस बरसा,यौवन जगे बुढ़ापे।

रंग भंग सज कर होली पर,अल्हड़ मानस मचले।
रीत प्रीत मन मस्ती झूमें,खड़ी फसल भी पक ले।

नभ में तारे नयन लड़ा कर,बनते प्रीत प्रचारी।
छन्न पकैया छन्न पकैया,घूम रही भू सारी।

परिचय : बाबूलाल शर्मा का साहित्यिक उपनाम-बौहरा हैl आपकी जन्मतिथि-१ मई १९६९ तथा जन्म स्थान-सिकन्दरा (दौसा) हैl वर्तमान में सिकन्दरा में ही आपका आशियाना हैl राजस्थान राज्य के सिकन्दरा शहर से रिश्ता रखने वाले श्री शर्मा की शिक्षा-एम.ए. और बी.एड. हैl आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन(राजकीय सेवा) का हैl सामाजिक क्षेत्र में आप `बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ` अभियान एवं सामाजिक सुधार के लिए सक्रिय रहते हैंl लेखन विधा में कविता,कहानी तथा उपन्यास लिखते हैंl शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र में आपको पुरस्कृत किया गया हैl आपकी नजर में लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः हैl

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