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वट-सावित्री की वेदी पर

योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र)
पटना (बिहार)
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मेरे गाँव का यह बरगद पेड़,मुझसे बहुत बड़ा है। मैं अब तेरासी ग्रीष्म को पार करनेवाला ही हूँ। खैर,बात बरगद पेड़ की उठी थी तो जब मैं बच्चा था,वट-सावित्री व्रत-पूजा के दिन मैं भी अपनी माँ के साथ इस पेड़ के पास जाता था और माँ की पूजा के निमित्त बरगद के हरे पत्ते तोड़कर उन्हें देता था। उस समय भी बरगद का पत्ता पूरा हरा ही दिखता था और आज भी पूरा हरा ही है। मेरे बचपन के समय जो पेड़ जवान था,वह आज भी जवान की ही तरह है,जबकि माँ परलोक गमन कर चुकी हैं।
इस वर्ष़ वट-सावित्री व्रत २२ मई को है। अब तो पेड़ के पास पूजा करने सधवा स्त्रियां भी कम ही जाती हैं और घर में ही बरगद की टहनी-डाली मंगा कर पूजा कर लेती हैं और अपने पति परमेश्वर की लंबी उम्र की कामना कर लेती हैं;भले वर की प्रतीक वह डाल धीरे-धीरे सूखती जाए! लेकिन,मेरे घर में तो एक गमले में बरगद का पौधा लगाकर उसे जीवंत किया जा चुका है,पर पूजा तो मन में होती है! ‘मन चंगा तो कटौती में गंगा! मन के हारे हार है,मन के जीते जीत!’ तब,प्रश्न उठता है कि बरगद वृक्ष सधवाओं के लिए पूजा का पात्र क्यों बना ? सामान्य रूप से जबाब यूँ है कि-‌यह लम्बी उम्र का प्रतीक है,यह सदा हरा-भरा रहता है,यह बांझपन भी दूर करता है,यह छायादार पेड़ है,अत: इसके नीचे शान्ति का वास है। धार्मिक जुड़ाव यह है कि पत्नी सावित्री ने मृत पति सत्यवान को मृत्यु देवता यम को प्रसन्न कर जिला लिया था और सर्वसुख भोगा। ‌इसीलिए,यह आस्था की बात है,जिसमें सधवा स्त्रियां किसी कीमत पर चूकना नहीं चाहतीं। ‘कोरोना’ महामारी के इस युग में पत्नियां दूर से ही सही,पति को पंखा झलने का सुख तो उठा ही लेंगीं! इन्हीं भावनाओं में बहकर एक कविता लिख डाली थी-‘मैं खड़ा बरगद-पेड़ सा’,जो मुझे अनंत सुख आज भी पहुंचाती है।
‘बरगद का पेड़’ मेरे ग्राम सनौर के दक्षिण में स्थित परती पर उसके पहले से ही है,जब मैं बच्चा था! यह कविता उसी पेड़ के संदर्भ में है-
‘मैं खड़ा बरगद-पेड़ सा,
‌मैं खड़ा इस बरगद-पेड़ सा-
‌बाँहें दूर-दूर फैलाये हुआ हूँ;
‌भरपूर हरीतिमा अपने में समेटे-
‌पूजा का एक पात्र बना हुआ हूँ।

‌चाहे मेरे पत्ते तोड़ो,डाल काट घर ले जाओ,
‌मैं तो पूजित होकर आशीष देने चला हूँ;
‌पर,मैं चाहता हूँ कहाँ कि पूजित होऊँ,
‌मैं तो किसी की चाह पूरी करने चला हूँ;
‌मैं खड़ा बरगद-पेड़ सा-
‌छाया सबको देने चला हूँ।

‌यह बरगद भी कितने सालों से खड़ा है,
‌आज भी वैसे ही हरे पत्तों से लदा है;
‌जब मैं अबोध मन से इस पर चढ़ा था-
‌माँ के ‘वरसायत’ के लिए पत्ते तोड़ा था।

‌माँ भी वरसायत पर कितनी खुश हुई थी,
‌जूड़े में पत्ता लगा कैसी खिल पड़ी थी;
‌मन से खुश होकर,आँखों से आशीष दे-
‌अपने वर को पूजने घर को चली थी।

‌मन ही मन यह कल्पना कर कि,
‌हरा रहना उसके सहारा की नियति है;
‌जिसके सहारे अपनी जीवन नैया-
‌दश बरस की वय से ही वह खे रही है।

‌आज न माँ है,न उसका सहारा-
‌पर,बरगद वहीं है खड़ा हरा-भरा;
‌सहता जेठ के धरती की जलन-
‌सूरज के तेज किरणों की चुभन।

‌देता संदेश कि तुम भी ऐसे ही डटे रहो-
‌जीवन की कठिनाईयों को,सहते रहो;
‌क्योंकि तुम भी किसी का प्यारा हो-
‌घर का ही नहीं,सबका सहारा हो।

‌डर पास न फटकने दो कि जो जुड़ा,
‌जज्बात है तुम्हारे जीवन के साथ;
‌तुम्हारे साथ का प्यार और मनुहार-
‌कहीं बन तो गया नहीं हिस्सेदार ?

‌भले तुम्हारी हर गति पर रोक है लगी हुई-
‌क्या मोल है तेरी सहमति,असहमति का ?
‌खीज कर कहो भी कि आधा है किसका ?
‌क्यों आधा ? जबाब है,पूरा है जिसका ?

‌मन कहता है रहो बरगद के पेड़ जैसा-
‌सदा हरा-भरा,आकाश को छूता;
‌ताकि तुम्हें झुका न सके कोई-
‌भले तोड़ ले डाल,पूजने के लिए!

‌इसीलिए मैं खड़ा हूँ बरगद सा-
‌अपनी लम्बी बाँहें फैलाये;
‌चारों ओर हरीतिमा बिखेरे-
‌एक पूजा का पात्र बनकर।’

‌बरगद को तो देखो! ‌आखिर क्यों रहता है बरगद सदैव हरा ? सड़कों पर आते-जाते अक्सर हम कई पेड़ देखते हैं। ये पेड़ हमें ऑक्सीजन और छाँव देते हैं। इन्हीं पेड़ों में से एक है बरगद का पेड़। इसका वैज्ञानिक नाम है ‘फाइकस बेंगालेंसिस।’ वैसे तो हर पेड़ का अपना एक अलग महत्व है,लेकिन यह पेड़ कुछ अलग है। वजह यह है कि यह पेड़ लंबे समय तक टिका रहता है। सूखा और पतझड़ आने पर भी यह हरा-भरा बना रहता है और सदैव बढ़ता रहता है। यही कारण है कि इसे राष्ट्रीय वृक्ष होने का दर्जा प्राप्त है। धार्मिक तौर पर तो यह पूजनीय है ही,लेकिन जान कर हैरानी होगी कि अपने औषधीय गुणों के कारण यह कई शारीरिक समस्याओं को दूर करने में भी कारगर साबित होता है।
‌पीपल के पेड़ की तरह ही नीम,बरगद और तुलसी के पेड़ अधिक मात्रा में ऑक्सीजन देते हैं। नीम,बरगद,तुलसी के पेड़ एक दिन में २० घंटे से ज्यादा समय तक ऑक्सीजन का निर्माण करते हैं।
इस बरगद के फायदे तो देखें कि,यह जोड़ों के दर्द से राहत दिलाए,बड़ का लाभ है दाँतों के स्वास्थ्य के लिए,बरगद के पेड़ का उपयोग है नकसीर के लिए,बरगद के पत्ते का उपयोग झाइयों को दूर करने के लिए,बरगद का इस्तेमाल करें बवासीर में,बड़ के दूध का सेवन करें आँखों के लिए,बरगद के दूध का प्रयोग भरे फटी एड़ियों में,बरगद की जड़ दस्त से राहत दिलाए,बरगद के औषधीय गुण करें त्वचा रोगों का उपचार,बरगद की जटा है बालों के लिए लाभकारी,बरगद की छाल के बचाए पेशाब की समस्या से,वट वृक्ष बचाए बांझपन से भी,‌बरगद का पेड़ दिलाए शीघ्रपतन से छुटकारा,छाल है मधुमेह के इलाज में उपयोगी एवं ‌बरगद के पत्ते करें फोड़े का इलाज।
पुराणों में वर्णन आता है कि कल्पांत या प्रलय में जब समस्त पृथ्वी जल में डूब जाती है उस समय भी वट का एक वृक्ष बच जाता है। अक्षय वट कहलाने वाले इस वृक्ष के एक पत्ते पर ईश्वर बाल रूप में विद्यमान रहकर सृष्टि के अनादि रहस्य का अवलोकन करते हैं। अक्षय वट के संदर्भ कालिदास के रघुवंश तथा चीनी यात्री ह्वेन त्सांग के यात्रा विवरणों में मिलते हैं।
आज हरे-भरे वानस्पतिक आच्छादन समाप्त होते जा रहे हैं और पर्यावरण पर घोर संकट छा रहा है। उस स्थिति में पेड़ लगाना और पेड़ की पूजा कर उसे जीवन का एक अंग बनाने की नितान्त आवश्यकता है,जिसका अवसय वट-सावित्री पूजा दे रही है।
बरगद पेड़ ने एक पुण्य बटोरा है कि उसने पत्नी-पति की एक दूसरे में आस्था सुदृढ़ कर दी है। पत्नी,पति (जो सामान्यतः उम्र में बड़ा भी होता) की पूजा कर अपने को पूर्ण रूपेण समर्पित कर पारिवारिक जीवन की गाड़ी को सामान्य रूप से चलाती है और पति भी पूजित होकर अपना पूर्ण विश्वास पत्नी में प्रकट कर प्रदर्शित करता है। भावना यही है कि पति-पत्नी को जीवन जीने के लिए जो प्राणवायु की आवश्यकता है उसके लिए बरगद से प्रेरणा मिले,जो अक्षय भी माना जाता है। यही वट-सावित्री की वेदी पर दम्पति की आराधना है।

परिचय-योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र) का जन्म २२ जून १९३७ को ग्राम सनौर(जिला-गोड्डा,झारखण्ड) में हुआ। आपका वर्तमान में स्थाई पता बिहार राज्य के पटना जिले स्थित केसरीनगर है। कृषि से स्नातकोत्तर उत्तीर्ण श्री मिश्र को हिन्दी,संस्कृत व अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-बैंक(मुख्य प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त) रहा है। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन सहित स्थानीय स्तर पर दशेक साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुए होकर आप सामाजिक गतिविधि में सतत सक्रिय हैं। लेखन विधा-कविता,आलेख, अनुवाद(वेद के कतिपय मंत्रों का सरल हिन्दी पद्यानुवाद)है। अभी तक-सृजन की ओर (काव्य-संग्रह),कहानी विदेह जनपद की (अनुसर्जन),शब्द,संस्कृति और सृजन (आलेख-संकलन),वेदांश हिन्दी पद्यागम (पद्यानुवाद)एवं समर्पित-ग्रंथ सृजन पथिक (अमृतोत्सव पर) पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सम्पादित में अभिनव हिन्दी गीता (कनाडावासी स्व. वेदानन्द ठाकुर अनूदित श्रीमद्भगवद्गीता के समश्लोकी हिन्दी पद्यानुवाद का उनकी मृत्यु के बाद,२००१), वेद-प्रवाह काव्य-संग्रह का नामकरण-सम्पादन-प्रकाशन (२००१)एवं डॉ. जितेन्द्र सहाय स्मृत्यंजलि आदि ८ पुस्तकों का भी सम्पादन किया है। आपने कई पत्र-पत्रिका का भी सम्पादन किया है। आपको प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो कवि-अभिनन्दन (२००३,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन), समन्वयश्री २००७ (भोपाल)एवं मानांजलि (बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन) प्रमुख हैं। वरिष्ठ सहित्यकार योगेन्द्र प्रसाद मिश्र की विशेष उपलब्धि-सांस्कृतिक अवसरों पर आशुकवि के रूप में काव्य-रचना,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के समारोहों का मंच-संचालन करने सहित देशभर में हिन्दी गोष्ठियों में भाग लेना और दिए विषयों पर पत्र प्रस्तुत करना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-कार्य और कारण का अनुसंधान तथा विवेचन है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचन्द,जयशंकर प्रसाद,रामधारी सिंह ‘दिनकर’ और मैथिलीशरण गुप्त है। आपके लिए प्रेरणापुंज-पं. जनार्दन मिश्र ‘परमेश’ तथा पं. बुद्धिनाथ झा ‘कैरव’ हैं। श्री मिश्र की विशेषज्ञता-सांस्कृतिक-काव्यों की समयानुसार रचना करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत जो विश्वगुरु रहा है,उसकी आज भी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। हिन्दी को राजभाषा की मान्यता तो मिली,पर वह शर्तों से बंधी है कि, जब तक राज्य का विधान मंडल,विधि द्वारा, अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के भीतर उन शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, जिनके लिए उसका इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था।”

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