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आज़ाद परिंदा

तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान) 
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बेटी के लिए,
अक्सर कहते
सुना है कि,
बेटी तो चिड़िया है, एक दिन उड़ जाएगी।
पर उड़ कर,
जाएगी कहाँ ?
मायके के पिंजरे से,
निकलकर
ससुराल के पिंजरे में,
रिश्तों के नाम पर
बस बदल दिए पिंजरे,
पर वही बन्धन।
खोल दो कभी तो,
चिड़िया का पिंजरा
काट दो कभी तो,
उसके सब बन्धन।
कभी तो साँस लेने दो,
उसे खुले आकाश में
कोई तो हो जो उसके,
कोलम पैरों को दे
अपने प्यार के,
अहसास की ज़मीं।
कोई तो हो जो दे,
उसके शिथिल परों को
अपने हौंसलों की,
ऊंची परवाजl
हो उसके लिए भी,
कल्पनाओं का एक
विस्तृत आकाश,
उसकी आँखों में
कोई तो भर दे,
इंद्रधनुषीय
स्वप्नों का रंग।
कभी तो उसे भी,
आभास होने दे
अपनी आज़ादी का।
कभी तो उसे भी लगे,
कि वो भी एक
आज़ाद परिंदा है।
उसके पंखों में भी,
उड़ान है
उसका भी अपना,
एक आसमान हैl
उसकी भी,
अपनी स्वयं की
एक पहचान है।
जीने दो उसे अपनी,
पहचान के साथll

परिचय-श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।

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