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इमारत: सामर्थ्य अनुसार बढ़ें

अवधेश कुमार ‘अवध’
मेघालय
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अगर बुनियाद कमजोर हो और उस पर बहुमंजिला एवं विकसित इमारत खड़ी करना चाहते हैं तो आसान नहीं होगा। इसके तीन उपाय हैं जिसमें से किसी एक को चुनना पड़ेगा। पहला-इमारत ढहाकर नयी बुनियाद डाली जाए,जिस पर नई इमारत बने। दूसरा-इमारत को बचाए रखकर अतिरिक्त बुनियाद डालकर पुरानी बुनियाद को हटा दिया जाए, तत्पश्चात आश्वस्त होकर इमारत बनाई जाए। तीसरा उपाय है कि ऊँची इमारत के सपने देखना ही बंद कर दें।
पहले उपाय में इमारत में रहने वाले नई इमारत बनने तक बेघर हो जाएँगे। दूसरे उपाय में बार-बार इमारत हिलेगी और रहने वालों को कुछ मुश्किलें आएँगी परन्तु वे बेघर नहीं होंगे और धीरे-धीरे सपने साकार होंगे। तीसरा उपाय विकास की दौड़ से खुद को बाहर रखकर मूक दर्शक बनने का है। तीसरा तरीका बिल्कुल परिवर्तन रहित है। एकरस जीवन,कोई कष्ट नहीं…,किन्तु एक बात स्मरणीय होनी चाहिए कि तीसरे तरीके से रहकर विकास की बात सोचना,अमेरिका सरिस होने की बात करना,चाँद पर झंडा गाड़ने की उम्मीद रखना,पुरानी भूलों को सुधर जाने की सोच रखना दिन में खुली आँखों से सपने देखने जैसा ही है।
अब “आधी छोड़ सारी को धावै,आधी मिलै न सारी पावै” के बहुपथ को छोड़ देना चाहिए।
अपनी सामर्थ्य और इच्छाशक्ति के अनुसार आपको इमारत या देश कैसा चाहिए,विचार कर लें और उस एक अभीष्ट दिशा में आगे बढ़ें।

परिचय-अवधेश कुमार विक्रम शाह का साहित्यिक नाम ‘अवध’ है। आपका स्थाई पता मैढ़ी,चन्दौली(उत्तर प्रदेश) है, परंतु कार्यक्षेत्र की वजह से गुवाहाटी (असम)में हैं। जन्मतिथि पन्द्रह जनवरी सन् उन्नीस सौ चौहत्तर है। आपके आदर्श -संत कबीर,दिनकर व निराला हैं। स्नातकोत्तर (हिन्दी व अर्थशास्त्र),बी. एड.,बी.टेक (सिविल),पत्रकारिता व विद्युत में डिप्लोमा की शिक्षा प्राप्त श्री शाह का मेघालय में व्यवसाय (सिविल अभियंता)है। रचनात्मकता की दृष्टि से ऑल इंडिया रेडियो पर काव्य पाठ व परिचर्चा का प्रसारण,दूरदर्शन वाराणसी पर काव्य पाठ,दूरदर्शन गुवाहाटी पर साक्षात्कार-काव्यपाठ आपके खाते में उपलब्धि है। आप कई साहित्यिक संस्थाओं के सदस्य,प्रभारी और अध्यक्ष के साथ ही सामाजिक मीडिया में समूहों के संचालक भी हैं। संपादन में साहित्य धरोहर,सावन के झूले एवं कुंज निनाद आदि में आपका योगदान है। आपने समीक्षा(श्रद्धार्घ,अमर्त्य,दीपिका एक कशिश आदि) की है तो साक्षात्कार( श्रीमती वाणी बरठाकुर ‘विभा’ एवं सुश्री शैल श्लेषा द्वारा)भी दिए हैं। शोध परक लेख लिखे हैं तो साझा संग्रह(कवियों की मधुशाला,नूर ए ग़ज़ल,सखी साहित्य आदि) भी आए हैं। अभी एक संग्रह प्रकाशनाधीन है। लेखनी के लिए आपको विभिन्न साहित्य संस्थानों द्वारा सम्मानित-पुरस्कृत किया गया है। इसी कड़ी में विविध पत्र-पत्रिकाओं में अनवरत प्रकाशन जारी है। अवधेश जी की सृजन विधा-गद्य व काव्य की समस्त प्रचलित विधाएं हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा एवं साहित्य के प्रति जनमानस में अनुराग व सम्मान जगाना तथा पूर्वोत्तर व दक्षिण भारत में हिन्दी को सम्पर्क भाषा से जनभाषा बनाना है। 

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