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तजो घृणा

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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भिन्न-भिन्न मति चिन्तना,मृगतृष्णा आलाप।
मँहगाई फुफकारती,सुने कौन आलापll

मिले हुए सब लालची,फैलाते उन्माद।
लड़ा रहे कौमी प्रजा,तुले देश बर्बादll

बीजारोपण नफ़रती,करे अमन का नाश।
मार धार तकरार बस,फँसे स्वार्थ के पाशll

मानवता नैतिक प्रथम,जन्में हैं जिस देश।
राजधर्म सबसे अहम,शान्ति प्रेम संदेशll

लानत है उस धर्म को,धिक्कारें उस क्रान्ति।
अमन प्रगति बाधक बने,फैलाए बस भ्रान्तिll

वादाओं से है सजा,है चुनाव बाज़ार।
भूले पा जनमत वतन,बनते ही सरकारll

जनमत पाना है सही,किन्तु तोड़ें न देश।
तजे लोभ हित राष्ट्र में,प्रेम अमन परिवेशll

बंद सभी रंगरलियाँ,दरवाजे घूसखोर।
सख़्त आज सरकार है,रहे मचा सब शोरll

सहनशील मतलब नहीं,हो बहुजन अपमान।
राष्ट्र विरत नफ़रत फ़िजां,पाया जहँ सम्मानll

खास कौम तुष्टिकरण,भड़क रही है आग।
सुलग रही सहनशीलता,मचे न भागमभागll

देश विरोधी ताकतें,तहस-नहस तैयार।
जन-मन फैलाते ज़हर,बस नेता गद्दारll

न्याय लचीला देश का,निडर बने शैतान।
कपटी दे धोखा वतन,बने दुष्ट हैवानll

चाहे कोई कौम हो,प्रथम राष्ट्र कर्तव्य।
हरे शान्ति सुख प्रेम जो,है दुश्मन ध्यातव्यll

दहशत में माँ भारती,बाधित जन उत्थान।
तजो घृणा चल साथ हम,कवि `निकुंज` आह्वानll

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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