एक दुर्भिक्षुक
सच्चिदानंद किरणभागलपुर (बिहार)**************************************** सुचिभेद्य अंधकार को,भेदित कर कलांतरसे दुर्भिक्ष को क्या पता ?कब कहां आराम है,या हो कोहराम…दुर्दिन के साए में,लिपटे खोज रहा!अपनी फूटी किस्मत पररो-रो पेट की,क्षुब्ध क्षुधा मिटाने…