दर्पण धुंधला गया
विजयलक्ष्मी विभा इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश)************************************ अंजलि भर आतप से,आनन कुम्हला गया।चिन्तित हो अनदेखा,दर्पण धुंधला गया॥ रोदन से कंठ भरे,छवि जब कुछ बोली।पीड़ित हो गगन हिला,धरणी भी डोली।समझाते सावन का बादल तुतला गया,अंजलि भर…