लोकसभा चुनाव २०१९ और भारतीय भाषाएँ

  यदि भारतीय भाषाओं के नजरिए से लोकसभा चुनाव २०१९ को देखा जाए तो इसमें दो बातें महत्वपूर्ण हैं,एक तो यह है कि भारतीय भाषाओं के जरिए लोकसभा चुनाव के दौरान किसने क्या पाया ? और दूसरा यह कि इस चुनाव में भारतीय भाषाओं ने क्या पाया ? या यूँ कहें कि जिन्होंने भारतीय भाषाओं … Read more

अधिवेशन-संगोष्ठी से हिंदी को बढ़ावा देने की जरूरत

डॉ.अरविन्द जैन भोपाल(मध्यप्रदेश) ***************************************************** हर जगह हर समय स्थानीय-राज्य स्तरीय-राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिवेशन-संगोष्ठी-गोष्ठी होती रहती है और स्वाभाविक हैं उनमे भाग लेने वाले उस स्तर के विद्वान-लेखक-चिंतक भाग लेते हैं और उनकी योग्यता के आधार पर ही कार्यक्रम की गरिमा बनती हैl यह जरुरी है कि इनमें बहुत अच्छी जानकारियां उपलब्ध होती है … Read more

हिंसक राजनीति में ध्वस्त होता लोकतंत्र

ललित गर्ग दिल्ली ******************************************************************* सत्रहवीं लोकसभा के चुनाव का समूचे देश में कमोबेश शांतिपूर्ण रहना जितना प्रशंसनीय है,उतना ही निंदनीय है पश्चिम बंगाल में उसका हिंसक, अराजक एवं अलोकतांत्रिक होना। चुनावों से लोकतांत्रिक प्रक्रिया की शुरूआत मानी जाती है,पर पश्चिम बंगाल में चुनाव लोकतंत्र का मखौल बन चुके हैं। वहां चुनावों में वे तरीके अपनाएं … Read more

महिला अत्याचार-हैंडल और पाने..सोच बदलने की जरुरुत

विनोद वर्मा आज़ाद देपालपुर (मध्य प्रदेश)  ************************************************ पुनः समाचार पत्रों में एक हृदयविदारक घटना पढ़ने को मिली। शल्यक्रिया में मोटर साईकल का हैंडल निकला और कोख को भी निकालना पड़ा….l निर्भया कांड हम अभी भी भूले नहीं हैं। पूर्व में भी महिला अत्याचार,हत्या के क्रूरतम तरीके देखने सुनने और पढ़ने को मिले हैं। ऐसा लगातार हो … Read more

अब कमान राष्ट्रपति के हाथों

डॉ.वेदप्रताप वैदिक गुड़गांव (दिल्ली)  ********************************************************************** यदि इस २९१९ के चुनाव में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिल जाए और एक स्थिर सरकार बन जाए तो भारतीय लोकतंत्र के लिए इससे बढ़िया बात तो कोई हो ही नहीं सकती। वह सरकार पिछले पांच साल की सरकार से बेहतर होगी,ऐसी आशा हम सभी कर सकते हैं। एक तो … Read more

विकास के लिये पर्यावरण की उपेक्षा कब तक ?

ललित गर्ग दिल्ली ******************************************************************* आज समग्र मनुष्य जाति पर्यावरण के बढ़ते असंतुलन से संत्रस्त है। इधर तेज रफ्तार से बढ़ती दुनिया की आबादी,तो दूसरी तरफ तीव्र गति से घट रहे प्राकृतिक ऊर्जा स्रोत। समूचे प्राणि जगत के सामने अस्तित्व की सुरक्षा का महान संकट है। पिछले लम्बे समय से ऐसा महसूस किया जा रहा है … Read more

चुनाव के बाद संभावनाएं क्या-क्या ?

डॉ.वेदप्रताप वैदिक गुड़गांव (दिल्ली)  ********************************************************************** इस १७ वें आम चुनाव के बाद किसकी सरकार बनेगी, उसका स्वरुप क्या होगा,और देश की राजनीति की दिशा क्या होगी,ये सवाल लोगों के दिमाग में अभी से उठने लगे हैं। मतदान का सातवां दौर १९ मई को खत्म होगा, लेकिन विभिन्न पार्टियों के नेताओं ने जोड़-तोड़ की राजनीति अभी … Read more

आषाढ़ का एक दिन और मल्लिका

शशांक मिश्र ‘भारती’ शाहजहांपुर(उत्तरप्रदेश) ************************************************************************************ आषाढ़ का एक दिन मोहन राकेश जी का प्रथम ऐतिहासिक नाटक है,जो रंग शिल्प सम्बन्धी संभावनाओं के नए क्षितिज खोजता प्रतहत होता है। प्रत्येक लेखक का अपना जीवन दर्शन होता है,जिसे वह जीवन के विविध आयामों में स्पर्श करना चाहता है। मल्लिका आषाढ़ का एक दिन नाटक में मोहन राकेश … Read more

युवाओं को परिवार का महत्व समझाएं और समझें

डॉ.अरविन्द जैन भोपाल(मध्यप्रदेश) ***************************************************** अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस विशेष-१५ मई……….. जिस प्रकार हमारे यहाँ सात दिनों के साथ वार होते हैं और आठवां वार परिवार होता है,परिवार जिसमें प्रेम,आदर,दूसरों के विचारों का आदर,साथ बैठकर अपने सुख-दु:ख का आदान-प्रदान करना,वह परिवार होता हैl आज बहुत बड़े-बड़े घर बनने के कारण आपस में मिलना-जुलना कम होता जा रहा … Read more

प्रतिशतों का मकड़जाल

पवन प्रजापति ‘पथिक’ पाली(राजस्थान) ************************************************************************************** प्रतिशतों के मकड़ झाल में उलझे बच्चे अस्सी- नब्बे फीसदी अंक प्राप्त करके भी उस प्रसन्नता से वंचित है,जो हमें कभी ‘मात्र उत्तीर्ण’ हो जाने पर ही मिल जाती थी। ये वो दौर था जब हम अंकतालिका में सिर्फ उत्तीर्ण या अनुत्तीर्ण वाला कॉलम ही देखा करते थे। प्रतिशत वाले … Read more