परिजन से ही ‘विजयश्री’
प्रो.डॉ. शरद नारायण खरेमंडला(मध्यप्रदेश) ******************************************************* घर-परिवार स्पर्धा विशेष…… कितना पावन,सुखद-सुहावन,मेरा घर-परिवार है।हिम्मत,ताक़त और हौंसला मेरा संसार है॥ सुख-दुख के साथी परिजन हैं,मिलकर बढ़ते जातेहर मुश्किल,बाधा,पीड़ा से,मिलकर लड़ते जाते हैं।मात-पिता,बहना-भाई से,खुशियों का आसार है,कितना पावन,सुखद-सुहावन,मेरा घर-परिवार है॥ हिल-मिलकर हम सारे रहते,प्यार असीमित बहताघर तो है मंदिर के जैसा,आकर ईश्वर रहता।पत्नी,बच्चे बल हैं मेरा,इनसे ही उजियार है,कितना … Read more