जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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कूप अब पाताल में ईमान के गरके हुए हैं।
गीत बोलो क्या सुनाऊँ,लोग पत्थर के हुए हैं।
निर्भया को न्याय मिलने में लगे थे साल कितने,
राम तंबू में फँसे थे फट गए त्रिपाल कितने।
तीन लोकों के विधाता अब कहीं घर के हुए हैं,
गीत बोलो क्या सुनाऊँ,…॥
चोर-डाकू फिर रहे रघुवंश का चोला पहनकर,
काग बगुले घूमते हैं हंस का चोला पहनकर।
बिम्ब अब देखूँ कहाँ पर आइने दरके हुए हैं,
गीत बोलो क्या सुनाऊँ,…॥
आज के नेता बने हैं चाटुकारों के दुलारे,
मंच पर दिखते विदूषक नायकों सा भेष धारे।
लोभ लालच कीच में ये शीश तक सरके हुए हैं,
गीत बोलो क्या सुनाऊँ,…॥
हाल यदि ऐसा रहा तो युद्ध घर में ही छिड़ेगा,
फावड़ा तलवार बन बंदूक से भी जा भिड़ेगा।
विश्व में बदलाव ‘हलधर’ मार या मरके हुए हैं,
गीत बोलो क्या सुनाऊँ,लोग पत्थर के हुए हैं…॥