कोई मीठा गान नहीं है
विजयलक्ष्मी विभा इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश)************************************ जीवन से बढ़ इस जगती में,कोई मीठा गान नहीं है। गीतकार है नियति सनातन,और गीत है अपना जीवन।गाते जाओ इस जीवन को,गायक बन कर ऐ जग चेतन।सुनने को तारे हैं ऊपर,सारा जग वीरान नहीं है…॥ सुख इसका आरोह निराला,दु:ख इसका अवरोह मधुरतम।घटनाएँ हैं संगति करतीं,आशाएँ हैं इसका सरगम।उठती स्वयं गगन से अविरल,ऐसी ऊँची … Read more