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गणतंत्र का बदलता स्वरूप

राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’
बहादुरगढ़(हरियाणा)
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अब हमें ७१वें गणतंत्र दिवस पर इस बात का गहनता से विचार करना है कि आज तक कितना स्वरूप बदला,बदला भी है,तो दिशा सकारात्मक है क्या ? इतनी अधिक जनसंख्या औऱ विविधता से भरे राष्ट्र में सबको साथ ले कर चलना,सबको बराबर मान-सम्मान देना,किसी की भावनाओं को ठेस न पहुंचे,इसका ध्यान रखना बहुत जरूरी हैं। २६ जनवरी १९५० को जब भारत गणतंत्र बना,तब भीमराव आम्बेडकर,मौलाना आज़ाद जैसे उच्च आदर्शों वाले लोगों की संख्या अधिक थी। देशभक्ति,निष्ठा,उत्साह अपनेपन का माहौल था,एक कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार व्यक्ति डॉ. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति बने। लौहपुरूष सरदार पटेल के कारण भारत का एकीकरण हुआ। उस समय की अनसुलझी कश्मीर समस्या आज भी है। पीओके पर पाक का ही कब्ज़ा है,घुसपैठ जारी है। धारा ३७० हटने के बाद भले ही पूरा भारत अब एक जैसा हो गया हो,देशभक्ति की भावना का संचार हो गया,पर अब छह महीने होने को आये,प्रतिबंध पूरी तरह नहीं हटे। हालात पहले से सामान्य है,तो अब सभी के साथ पूर्ण सामंजस्य होना ही चाहिए।
राष्ट्रभक्ति की भावना तो हर निवासी के दिल में होनी चाहिए,पर उससे भी ऊपर साम्प्रदायिक सदभावना का होना बहुत जरूरी है। हरेक के मन में भारतमाता के प्रति यह भावना होनी चाहिए-
“तेरी गौरव गाथा जननी,शतमुख शत-शत बार कहें,तेरा वैभव अमर रहे माँ,हम दिन चार रहें न रहें।”
प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने उस समय की परिस्थिति के अनुसार सूझ-बूझ से विकास के मार्ग पर देश को आगे बढ़ाया। शास्त्री व इंदिरा जी ने राष्ट्र स्वाभिमान की रक्षा व विकास की निरंतरता को बनाये रखा। मिली-जुली सरकारों में कुछ मुद्दे ठंडे बस्ते में डाल विकास कार्य होते रहे। लम्बे अंतराल के बाद पूर्ण बहुमत की सरकार श्री मोदी के नेतृत्व में आई,अब दूसरी पारी में है।
विदेशों में भारत का मान-अपमान बढ़ने के साथ यह भी जरूरी है कि देश के अंदर भी मतैक्य हो,समरूपता हो,आपस में प्यार हो। लोकतांत्रिक मूल्यों का आदर हो। सिर्फ विरोध के लिए विरोध कटुता,वैमनस्य को
बढ़ाता है,राष्ट्रीय एकता भी तार-तार होती है। प्रचंड बहुमत की महत्ता भी तभी है,जब
अल्पमत की बात भी सुनी जाए,अन्यथा हर ओर असमंजस,दुविधा की ही हालत होगी, जैसा अब पूरे राष्ट्र में हो रहा है। नेकनीयती,सही भावना को ले कर अभी हाल ही में पारित नागरिकता संशोधन कानून पर पिछले ढाई महीने से चल रहा आंदोलन, विरोध शांत नहीं हुआ है। दोनों पक्ष डटे रह कर राष्ट्रीय अस्मिता को नुकसान पहुंचा रहे हैं। कूटनीतिक सूझ-बूझ से जल्दबाजी में पारित बिल को अनजाने में मुस्लिम अपने खिलाफ समझ बैठे हैं। गणतंत्र का,लोकतंत्र का भी भला इसी में है कि लम्बे विरोधाभास को जल्द सुलझाया जाए।
अब यह बात बहुत सकून देती है कि पाकिस्तान को उसकी हरकतों का माकूल जवाब मिल रहा है,आतंकवाद में काफी कमी आई है,चीन भी पहले की तरह आँखें नहीं तरेर रहा,अन्य पड़ोसी देशों से हमारे सम्बन्ध अच्छे हैं, भारत की शान अब एक उभरती हुई महाशक्ति के रूप में मान्यता है,बड़े-बड़े अंतराष्ट्रीय मंच पर उसकी बात सुनी जाती हैं। हर कोई मानता है कि भारत स्वयं में एक विस्तृत,व्यापक सम्भावना से भरा विशालकाय बाजार है। हर बड़ा देश टक-टकी लगाए हमारे साथ सहयोग का उत्सुक है। यही हमारे विशाल गणतंत्र की महानता है।
भले ही आज सकल घरेलू उत्पाद निचले स्तर पर है,विकास दर कम है, महंगाई बहुत बढ़ी है,बेरोजगारी का स्तर पिछले एक दशक में सबसे कम है, पर विश्व अर्थव्यवस्था को हम पर भरोसा है कि जल्द ही हम इससे निजात पा लेंगे। हमें भी भरोसा है अपने पर,अपने कर्णधारों पर।
“हम उफनती नदी हैं,हमको अपना कमाल मालूम है,हम जिधर भी चल देंगे,रस्ता अपने-आप बन जाएगा।”
आज भारत विज्ञान,अंतरिक्ष,ऊर्जा,उद्योग, रक्षा हर क्षेत्र में विश्व में अग्रणी है। ‘इसरो’ की आज,’नासा’ की तरह विशिष्ट पहचान है। इन सब उपलब्धियों पर आज पूरे देश को गर्व है।
विश्व की चौथी महाशक्ति,हम जल्द ही तीसरी महाशक्ति होंगे। आज पूरे विश्व में भारतवासियों को सम्मान व विश्वास की दृष्टि से देखा जाता है। सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में तो अमरीका व चीन भी हमारा लोहा मानता है।
हमारा भारत यूँ ही महान राष्ट्र,महान गणतंत्र नहीं बना,इसमें लाखों स्वतन्त्रता सेनानियों, क्रांतिकारियों के अमिट बलिदान की अमर छाप है। स्वतन्त्र भारत के सभी नेताओं,सभी सरकारों,सभी समुदाय के लोगों का गतिशील ,कर्मठ विशाल योगदान है। कोई भी यह नहीं कह सकता कि हमने ही किया बस,बाकी ने कुछ नहीं किया। राष्ट्र के अनवरत विकास में सभी पीढ़ियों का,हर समुदाय का,किसी न किसी रूप में बराबर योगदान है। आखिर सबके ही सहयोग से तो सात दशकों से भी अधिक के समय में यह समृद्धि का विशाल वटवृक्ष खड़ा हुआ है। आइए,गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर शपथ लें कि हम दृढ़ विश्वास,मज़बूत इरादे के साथ,सभी भेदभाव को त्याग,मिल-जुल कर राष्ट्र को समृद्धि की नित नई-नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे,क्योंकि-
“बांधे जाते इंसान कभी,
तूफान न बांधे जाते हैं,
काया जरूर बांधी जाती,
बांधे न इरादे जाते हैं।”

परिचय–राजकुमार अरोड़ा का साहित्यिक उपनाम `गाइड` हैl जन्म स्थान-भिवानी (हरियाणा) हैl आपका स्थाई बसेरा वर्तमान में बहादुरगढ़ (जिला झज्जर)स्थित सेक्टर २ में हैl हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री अरोड़ा की पूर्ण शिक्षा-एम.ए.(हिंदी) हैl आपका कार्यक्षेत्र-बैंक(२०१७ में सेवानिवृत्त)रहा हैl सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत-अध्यक्ष लियो क्लब सहित कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ाव हैl आपकी लेखन विधा-कविता,गीत,निबन्ध,लघुकथा, कहानी और लेख हैl १९७० से अनवरत लेखन में सक्रिय `गाइड` की मंच संचालन, कवि सम्मेलन व गोष्ठियों में निरंतर भागीदारी हैl प्रकाशन के अंतर्गत काव्य संग्रह ‘खिलते फूल’,`उभरती कलियाँ`,`रंगे बहार`,`जश्ने बहार` संकलन प्रकाशित है तो १९७८ से १९८१ तक पाक्षिक पत्रिका का गौरवमयी प्रकाशन तथा दूसरी पत्रिका का भी समय-समय पर प्रकाशन आपके खाते में है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान पुरस्कार में आपको २०१२ में भरतपुर में कवि सम्मेलन में `काव्य गौरव’ सम्मान और २०१९ में ‘आँचलिक साहित्य विभूषण’ सम्मान मिला हैl इनकी विशेष उपलब्धि-२०१७ में काव्य संग्रह ‘मुठ्ठी भर एहसास’ प्रकाशित होना तथा बैंक द्वारा लोकार्पण करना है। राजकुमार अरोड़ा की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा से अथाह लगाव के कारण विभिन्न कार्यक्रमों विचार गोष्ठी-सम्मेलनों का समय समय पर आयोजन करना हैl आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-अशोक चक्रधर,राजेन्द्र राजन, ज्ञानप्रकाश विवेक एवं डॉ. मधुकांत हैंl प्रेरणापुंज-साहित्यिक गुरु डॉ. स्व. पदमश्री गोपालप्रसाद व्यास हैं। श्री अरोड़ा की विशेषज्ञता-विचार मन में आते ही उसे कविता या मुक्तक रूप में मूर्त रूप देना है। देश- विदेश के प्रति आपके विचार-“विविधता व अनेकरूपता से परिपूर्ण अपना भारत सांस्कृतिक,धार्मिक,सामाजिक,साहित्यिक, आर्थिक, राजनीतिक रूप में अतुल्य,अनुपम, बेजोड़ है,तो विदेशों में आडम्बर अधिक, वास्तविकता कम एवं शालीनता तो बहुत ही कम है।

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