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पंजाब आतंकवाद की शतरंजी चालें

राकेश सैन
जालंधर(पंजाब)
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दो दशकों तक आतंकवाद का दंश झेल चुके देश के सीमावर्ती राज्य पंजाब में आतंकवाद को लेकर ही २ समाचार मिले,जिसने देश को चिंता में डाल दिया है। अमृतसर पुलिस ने ७ मई को २ नशा तस्करों को गिरफ्तार किया जिनका संबंध खतरनाक जिहादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन से सामने आया। एक अन्य घटना में पंजाब पुलिस के पूर्व प्रमुख सुमेध सिंह सैनी सहित चंडीगढ़ पुलिस के ८ जवानों व अधिकारियों के खिलाफ अपहरण जैसे २९ साल पुराने मामले में प्रकरण दर्ज किया गया है। सुमेध सिंह सैनी पंजाब पुलिस के पूर्व डीजीपी केपीएस गिल के दल के उन अधिकारियों में शामिल रहे हैं जिन्होंने राज्य में आतंकवाद की विषैली बेल का समूलनाश किया। सैनी जैसे अधिकारी के खिलाफ प्रकरण दर्ज होने से स्वभाविक है पुलिस बल हतोत्साहित होगा। प्रश्न है कि प्रदेश में एक ओर जहां हिजबुल जैसे आतंकी संगठनों के विषाणु विद्यमान हों,उस राज्य में आतंकवाद से लड़ने वाले पुलिस अधिकारियों को प्रताड़ित करना कितना उचित है ?
जम्मू-कश्मीर के अवंतीपोरा बंकर में मारे गए हिजबुल कमांडर रियाज नायकू ने अपने साथी हिलाल अहमद को पैसा लेने अमृतसर भेजा और वह पकड़ा गया। हिलाल से २९ लाख रुपए बरामद हुए। यह पैसा उसे अमृतसर के नशा तस्कर बिक्रम सिंह और मनिंदर सिंह ने दिया। बिक्रम और मनिंदर को पंजाब पुलिस ने गिरफ्तार किया है। दोनों से ३२ लाख रुपए नकद और १ किलो हेरोईन बरामद हुई है। फिलहाल राष्ट्रीय जांच एजेंसी मामले की जांच कर रही है। यह कोई पहला अवसर नहीं है जब कश्मीर के जिहादी आतंकवाद से पंजाब के संपर्क सामने आए हों। यह घटनाएं साफ संकेत हैं कि पंजाब जिहादी आतंकवाद की आग से बचा नहीं बल्कि यहां फैले नशा कारोबार के लिए यह राज्य आतंकवाद का वित्त पोषक बनता दिखाई दे रहा है। ऐसे में जहां पुलिस के जवानों को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है उसके विपरीत सुमेध सिंह सैनी समेत चंडीगढ़ पुलिस के ८ पूर्व अधिकारियों पर मोहाली में अपहरण का प्रकरण दर्ज किया गया है। यह मामला वर्ष १९९१ का है,उस समय सुमेध सिंह सैनी चंडीगढ़ में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) के पद पर तैनात थे। उस दौरान सैनी पर एक जानलेवा आतंकी हमला हुआ जिसमें उनके ४ सुरक्षाकर्मी मारे गए। इस पर पुलिस ने हमले के आरोप में बलवंत सिंह मुल्तानी नामक आरोपी को मोहाली से उठाया। बलवंत सिंह मुल्तानी के भाई पलविंदर सिंह ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया है कि सुमेध सिंह के आदेश पर उसके भाई को चंडीगढ़ में पुलिस थाने ले जाया गया था। इस पर उन्होंने मुल्तानी के अपहरण की शिकायत दर्ज कराई थी। इस मामले की काफी लंबी जंग चली। आखिरकार पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय के दिशा निर्देशों पर जांच की गई। इसके बाद केन्द्रीय जांच ब्यूरो द्वारा २ जुलाई २००८ को मामला दर्ज किया गया। उच्च न्यायालय के आदेश को सर्वोच्च न्यायाल में चुनौती दी गई। सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश को इस आधार पर रद्द कर दिया कि उच्च न्यायालय की पीठ के पास प्रकरण का निपटारा करने के लिए अधिकार क्षेत्र की कमी है। नतीजे के तौर पर सीबीआई की तरफ से इन आदेशों के आधार पर दर्ज प्राथमिकी को केवल तकनीकी आधार पर रद्द किया गया।
सुमेध सिंह सैनी पंजाब के कड़क अफसरों में माने जाते थे। आतंकवाद के दौरान में केपीएस गिल के बाद आतंकियों की विशेष सूची में दूसरे क्रम पर रहकर सुपरकॉप के रूप में सैनी ने पहचान बनाई। २०१५ में हुए आतंकी हमले के दौरान सैनी ने पंजाब पुलिस की टीम की ओर से ही आतंकियों का सफाया करवाया था। पंजाब पुलिस ने आतंकियों को ढेर करके पूरी दुनिया में शाबाशी हासिल की थी। साल २००२ में मुख्यमंत्री कै. अमरिंदर सिंह के पहले कार्यकाल में उनके साथ मतभेद होने के बाद सैनी को विभाग में नजरअंदाज करके रखा गया था। कै. के खिलाफ कुछ घोटाले के प्रकरण दर्ज करवाने को लेकर भी सैनी कांग्रेसियों के निशाने पर रहे हैं। केवल इतना ही नहीं,पंजाब में हुई बेअदबी की घटनाओं को लेकर भी वर्तमान कांग्रेस सरकार ने सैनी को कानूनी दांव-पेच में फंसाने का बहुत प्रयास किया और यह मामला अभी अधर में लटकता आ रहा है।
वैसे तो आतंकवाद के दौर में भी मानवाधिकार, पंथक आधार पर आतंकियों से लोहा ले रहे पंजाब पुलिस के अधिकारियों को प्रताड़ित किया जाता रहा,परन्तु आतंकवाद समाप्त होने के बाद भी यह सिलसिला थमा नहीं। राज्य में सक्रिय कट्टरपंथी तत्व पुराने मामलों में सच्ची-झूठी शिकायतें दर्ज करवा कर आज भी इन अधिकारियों पर मानसिक दबाव बनाए हुए हैं। इसी दबाव के चलते एक दशक पहले एक आईपीएस अधिकारी ने रेल गाड़ी के नीचे आकर आत्महत्या कर ली थी। आज भी वो अनेक पुलिस अधिकारी इन शिकायतों के चलते अदालतों के धक्के खा रहे हैं जिन्होंने अपनी व अपने परिजनों की जानें दांव पर लगा कर आतंकवादियों से लोहा लिया था। राज्य की राजनीति इन कट्टरपंथी तत्वों का समय-समय पर अपनी सुविधा के अनुसार इस्तेमाल करती रही है। चाहे मुख्यमंत्री कै. अमरिंदर सिंह उक्त अपहरण के मामले में अपनी भूमिका होने से इंकार कर चुके हैं, परंतु सभी जानते हैं कि सुमेध सिंह सैनी का उनके साथ छत्तीस का आँकड़ा रहा है। २९ साल के बाद एक आतंक के संदिग्ध व्यक्ति के अपहरण का मामला दोबारा खुलना इस बात का कहीं न कहीं संकेत देता है कि राज्य में राजनीति की बिसात पर आतंकवाद की शतरंजी चालें चली जा रही हैं।

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